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________________ ७१ होय है। जब यह आत्मा कर्म नाश. तन छोडि, मोक्ष होय । सो फेर संसारमैं अवतार नाहों लय है। याका नाम निरालोक मोक्ष है। या मोत्तमैं जनम-मरण नाहीं, इन्द्रिय-जनित सुख नाही, तन का युद्गलोक आकार नाहीं। निरंजन, निराकार, निर्दोष, शुद्ध भगवान सिद्ध हैं। सो निरालोक मोक्ष जानना। मो अवतारवादी भव्य । यह || सुद्ध मोक्ष है यह अवतार नाही होय है ऐसा जानना। तेरे मत का वचन सालोक मोक्ष जो इन्द्रलोक, तहां तें अवतार जानना। इति अवतारवादी का मोक्ष तें अवतार कथन। आगे क्षणिकमती नय का स्थापन ! जो एक नयतें तो असत्ति है और कोई नयतें आत्मा क्षणभंगुर है ऐसा कहिरा है-भो क्षणिक मतवादी भव्य ! तूं एक शरीर में अनेक आत्मा छिन्न-छिन आवते मान है । सो तेरा मत तोकू प्रत्यक्ष असत्य बताया। सो या नय तो तेरी खंडी गई। अरु जा नय ते आत्मा क्षणभंगुर है, सो तोकौं जिन-आज्ञा-प्रमाण आत्मा में क्षणभंगुरपना कहिरा है, सो सुन । एक शरीरमैं तिष्टता इस जीव ने अपनी विशेष आयुकर्म के जोगते, अनेक अल्प आयु के धारी मनुण्य, तिर्यंचन की पयाय विनाती देखो। सो यह निकट संसारी जीवन की पर्याय विनशती देख, उदास होय विचारता भया। जो मेरे देखते एती पर्याय उपजों, एती पर्याय विनशी, सो संसार में जीवों की पर्याय क्षणभंगुर है। ऐसा क्षणभंगुर जगत-जीवों का जीवन है। ऐसी ही अपनी पर्याय तरणभंगुर जानि, उदास होय, राज-सम्पदा तणि, दीक्षा अङ्गीकार करें हैं । ऐसे क्षणभंगुरपना जानना है। सो कल्याण करता है। एक शरीर में ही प्रारमा रहता नाही, कबहूं देव होय मरै है। कबहूं मनुष्य होय मर है। कबहू पशु होय मरे है। कबहूं नारकी होय मरै है। रोसे चारि गति में अनादिकाल का परिभ्रमण कर है, कहीं थिर रहता नहीं। थिरि रहने का स्थान एक मोक्ष है। रोषा विचार, संसार दशाक क्षणभार जानि, संसारतें उदास होय, परिग्रह तज करि, मोक्षाभिलाषी अपना कल्याण करें हैं। तातें भी मन्य क्षणिक मनवादी! तूं संसार में आत्मा तौ सदैव शाश्वत जानि। परन्तु पर्याय चारगति रूप है सो क्षणभंगुर जानि। ऐसा श्रद्धान करितो तोकौं कल्याण करता होयगा। इति क्षणिक मतोन का भ्रम निवारण कथन । आगे केई कर्मवादी आत्माकं भगवान उपजावे हैं ऐसा माने हैं। ताका श्रद्धान तौ आगे खण्डन करचा है। परन्तु कापना भी कोई वस्तु का अङ्ग है सो जिन-आना-प्रमाण कर्ता का स्वभाव । कहिए है। भो कर्त्तावादी भट्यात्मा! तूं नवीन आत्मा का कर्ता भगवान माने, सो नय तो तेरी असति है। परन्तु ३१ ।।
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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