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________________ भी जाने थोरे पदारथ देखे-जानै होय, ताकै ज्ञान भी थोड़ा होते, सुख भी थोरा होय । विशेषज्ञानी कू विशेष सुख होय है। जैसे—कोई पुरुष अनेक देशन का फिरनहारा होय, अनेक राज-सभा का बैठनेहारा होय, अनेक मनुष्यन तें बात करनहारा होय, अनेक तरह के नृत्य-गीतादिक का देखनेहारा होय, अनेक जाति के लौकिक चरित्र देखनेहारा होय, अनेक शास्वनि का देखने-जाननेहारा होय, ताकं ज्ञान विशेष होय। जाने रातै स्थान नहीं देखे, ताके ज्ञान भी अल्प होय। सो सुख हैं, सो ज्ञान के आश्रय हैं। सो जाके ज्ञान बहुत, सो बहुत सुखी और जाके अल्पज्ञान ताकै सुख भी थोरा होय तथा कोई स्थान वि यमीत अनेक कौतुक होंय हैं। सीजाको दोखता नाहीं ताकै तिनका सुख भी नाहीं । जाकू अल्प दोर्खे हैं तिनको अल्प सुख हैं। कोई पुरुष उत्तुंग (ऊँचे) स्थान नजदीक बैठा, ताकी सर्व दीखे है सो सर्व सुखी है ऐसा जानना तथा जैसे—काहू सेठ का मन्दिर है | सौ नाना प्रकार की महिमा को लिए है। कहीं ती अनेक रन जड़ित शोभा है, कहीं अनेक प्रकार चित्राम है, कहीं मनोज्ञ महलन सहित बाग हैं। कहां फुहारे अनेक घटें हैं। कहीं नृत्य गान होय है। कहीं अनेक प्रकार की बिछायत बिछी हैं, कहीं महासुन्दर नर-नारी अनेक वादिन्न बजाय क्रीड़ा करें हैं, इत्यादि अनेक शोभा सहित मन्दिर है । तहाँ केई परदेशी अनेक पुरुष, इस मन्दिर को शोभा देखने कूगये। सो किसी ने एक स्थान देख्या; किसीने दोय, किसीनै चारि, किसी ने दस और किसी ने सर्व स्थान देखे। सो अब देखि, जानें जैसा स्थान देख्या, याकै जानपने में आया तैसा हो सुख मया। जानैं सर्व स्थान देखे ताकै सर्व सुख भया। तैसे ही यह तीन लोकमन्दिर मैं अनेक रचना पाइरा है। तामैं अनन्ते जोव परदेशी तमाशगीर आए हैं। तिन जीवन कू लोक विष जेता-जेता पर पदार्थन का जानिपना होय । ता जीवकों तैसा ही सुख होय है। श्रुतज्ञान के वंश भी अनेक हैं। सो कोई जोव श्रुतज्ञान थोरा पक्ष्या है, ताकै सुख थोरा है। जो अङ्ग पूर्व विशेष पढ़ें हैं तिनके बड़ा सख है। अवधिज्ञानी अपने ज्ञानतें लाखों योजन प्रमाण क्षेत्रको अवधिज्ञानतें जानें, सो विशेष सुखी है। ये ज्ञान एक स्थान पै तिष्ठता दूरवर्ती पदारथन की जानें, ताके सुख विशेष ही होय । मनः पर्ययज्ञानतें पर के मनविकल्प जो होंय तिन सबन कौं जाने। ताकें और भी विशेष सुख होय और इनत अनन्तगुणा सर्व लोकालोक के घट-घट को जानै सो केवलज्ञानी महासुस्ती हैं तातै मो अज्ञानवादी! तूं ऐसा जानि । जो पर-पदार्थन के जानने
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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