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________________ बी 갤 ष्टि ६२ का ज्ञान है सो ही सुख का कारण है। परन्तु इतना विशेष है कि जो संसारी जीव पर-पदार्थन कौं जानें हैं। सो तो रागद्वेष सहित जानें हैं। ताकरि कर्मबन्ध का कर्त्ता होय है । जे वीतरागी कर्मनाशक सर्वज्ञकेवली स्वपर पदार्थ कूं जानें हैं सो राग-द्वेष रहित जानें हैं। सो इन भगवान के राग-द्वेष अभावतें कर्मबन्ध नहीं होय है । तातैं पर - पदार्थन का ज्ञान राग-द्वेष सहित तौ संसार का कारण है। सो तो आत्मा कूं दुखदाई है। राग-द्वेष रहित पर-पदार्थन का जानपने रूम ज्ञान है सो सुखदाई है। तानें है भ्रात अज्ञानवादी ! तू ऐसा दृढ़ सरधान करि, कि जो ज्ञान है सो आत्मा का गुण है। ज्ञान बिना जीव नाहीं। जीव बिना ज्ञान नाहीं । ज्ञान अरु जीव इन विषै गुणगुणीपना है। सो गुणी के नाश तैं गुण का नाश होय; गुण के नाशर्तें गुखी का नाश होय । तातें गुरा गुणी का नाम भेद है, सत्ता मेद नाहीं । जैसे— लवरा में अरु क्षारगुण में नाम भेद है सत्ता भेद नाहीं लवण है सो तौ गुणी हैं रुक्षारपणा लवण का गुण है। गुरु है सो गुणी के आश्रय है। ऐसे ही आत्मा में अरु जैसे सार गुण है सो लवण के आश्रय है। ज्ञान में गुणगुणोपना जानना आत्मा तौ गुणा है अरु ज्ञान गुण है। जाकरि गुणीक जाने सो गुण कहिये तैसे आत्मा को ज्ञान कर जानिये है। ऐसे ही गुसगुणी में एकता जानना। एक के अभाव तें दोऊ का अभाव होय है जैसे- सूरज तो गुणी है अरु जाकर सूर्य जान्या जाय ऐसा प्रकाश सो सूर्य का गुण है। सूर्य के अभाव होते तेज प्रकाश का अभाव होय । प्रकाश के अभाव तें सू" का अभाव होय । तैसे ही आत्मा विषै अरु ज्ञान विषै एकता जानि । नाम भेद है, प्रदेश सत्ता भेद नाहीं । तातें भी सुबुद्धि । तूं आत्मा विज्ञानको उपाधि मति मानें। ज्ञान है सो आत्मा का गुण जानि । ज्ञान के प्रभाव तैं आत्मा का अभाव होय, आत्मा के अभाव तैं मोक्ष का अभाव होय मोक्ष के अभाव कर्म का बंधाव होय कर्म के बँधावतें जगत् में भ्रमाव होय और जगत् भ्रमावतें दुख का बढ़ाव होय । तातैं भो भव्य ! आत्मा तूं जगत् तैं छुट्याचा अरु सुखकों भोगा चाहे है तो आत्माको मोक्ष विषै केवल-ज्ञान सहित जानि जाके मत विष मोक्ष- आत्मा ज्ञान रहित होय ताके आप्त, आगम, पदार्थ असत्य होय हैं। ऐसे अज्ञानवादी को समझाय शुद्ध श्रद्धान कराया। इति अज्ञानवादी का कथन । ६ । आगे स्थिरवादी का सम्वाद लिखिये है। केई स्थिरवादी ऐसा मानें हैं जो जैसा मरें, तैसा हो उपजै । जो देव मरे तो देव हो होय, नारको मरे तो नारकी उपजै, ส ६२ 何 पी
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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