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________________ ft ! कोई उस भले आदमी कौ फेरि कहै तुम इस कुतवाल के तहखाने मैं चालौं, तौ वो कैसे आवे कबहूँ नहीं आवे तैसे ही तन बन्दीवाने ते महादुस्ख भोगते कोई पुण्यते छूटने का उपाय गुरुनि का निमित्त पाय जान्या। सो राज सम्पदा तजि चारित्र अङ्गीकार करि नाना तपरि कर्म बन्धन का क्षय करि सिद्धलोक को प्राप्त भये निर्बन्ध महा सुखी भये। सो अब जगत्पूज्यपद पाय वह केवल ज्ञान का धारी परमात्मा भगवान इस दुर्गन्ध स्थान सप्तधातमई गरा स्थान में कैसे आवे, कबहूँ भी नहीं आवै। तातै भो भव्य । अब सुनि। जाके मन में मोक्ष तें पोछा अवतार होता होय ताके श्राप्त, आगम, पदामा देस हैं। इति रामतारवादी ना सम्वाद कथन ! मागे अज्ञानवादी का सम्वाद लिखिये है। अब केई मतवाले मोक्ष आत्माको ज्ञान-रहित माने हैं। ऐसा कह है, जो आत्मा विर्षे पर-पदारथ के जानने का जेता ज्ञान है सो ही उपाधि है। जब पर के जानने के ज्ञान का अभाव होयगा तब मोक्ष होयगी। ऐसा माने हैं। ताकौ कहिये है। मो मोक्ष आत्मा को ज्ञानरहित माननेहारे! तु आत्माको मोक्षविर्षे ज्ञानरहित मानें हैं। जो पर-पदारथ के जानने का आत्म विषं ज्ञान है । सो तो आत्मा का स्वभाव है। ज्ञान स्वभाव का नाश मए आत्मा का अभाव होय है। जैसे अगनि विर्षे तताई (गर्मी) का गुण है सो तहाँ तताई का अभाव भये अगनि का भी नाश होय तथा दीपक का गुण प्रकाश है सो प्रकाश का नाश भये दीपक का भी अभाव होय। तातें है भव्य ! पर-पदारथ के जानने का ज्ञान है सो आत्मा का स्वभाव है। सोई ज्ञान के प्रभा व भात्मा का अभाव होय है। सो आत्मद्रव्य का अभाव कबहूँ होता नाहीं। तातै भो मठ्यात्मा ! तूं सुनि। आत्मा पर-पदारथ की जाने है। सो पर-पदारथ के जाननें विर्षे कछु दोष नाहीं। दोष तौ राग-द्वेष विर्षे है। सो राग-द्वेषकरि पर-पदारथको देखना, सो आत्मा की अशुद्धता हैं और भी अज्ञानवादी। तू मोक्ष भये पीछे, आत्माकों ज्ञानरहित मानेगा तो भगवान के सर्वज्ञपने का अभाव होयगा। तब भगवान्कू अन्तरयामीपने का पद नहीं बनेगा और तब अन्तरयामीपना नहीं भरा भगवानकं अज्ञानता आवेगी अज्ञानता आये अज्ञानीको र जगतनाथपना नहीं सम्भव है। ताते हे अन्नानवादी! सुख है सौ पर-पदारथ के जानने का ही है। सो जानपना - गि झानते होय है। तातें झान बिना सुख नाहीं। सुख बिना दुखी रहै। सो मोक्षजीवकों दुखीपना सम्भवता नाहीं।। तातें बनन्त सुख का धनी भगवान है। सो केवलज्ञान ही सुख का कारण जानना। सो त देखि, लौकिक विर्षे
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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