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________________ ५४८ कलश, कछुवा, कनक, कमल, शड, सर्प और सिंह—ये चौबीस जिन के चिह्न कहे । सो एक हजार आठ चिह्न, सर्व शरीर अङ्गोपाङ्ग में यथायोग्य स्थान पर होय हैं । अरु रा चिह्न जो प्रतिबिम्ब के सिंहासन में लिखिए हैं। सो भगवान् के दाहने चरण वि जानना । जैसे आदिदेव के चरण में वृषभ का चिह्न है। तैसे ही सर्व जिन के पावन में जानना । इति जिन-चिह्न। आगे चौबीस जिन के शरीर का वर्ण कहिये है। तहाँ चन्द्रप्रभ अरु पुष्पदन्त ये दोय जिन, शुक्ल वर्ण भए अरु मुनिसुव्रत स्वामी, बअनगिरि समान श्याम वर्ण है 1 नैमिनाथ जिन मोर कंठ समान हरित तन धारी हैं और पद्मप्रभ, रक्त कमल समान तन धारी हैं और बारहवें वासुपूज्य जिन, टेसू के फूल समान तन धारी है और सातवें सुपार्श्वनाथ जिनकी काय, वैडूर्य मरिण समान, हरित वर्ण है और पार्श्वनाथ-जिनकी काय, सजल मेध घटा समान, श्याम वरा है और बाकी षोड़श जिनके शरीर, ताये स्वर्ण समान वर्ण के हैं । ये चौबीसजिन के तन का वर्ण कह्या। अब आगे ये जिन, पूर्व-भव में जो मनुष्य थे सो वह नाम कहिये हैं। वृषभदेव पुरवभव में वननाभि चक्रवर्ती थे और शेष-जिनके पूर्व-भव के नाम क्रम करि कहिये हैं। विमल राजा, विमल वाहन, महाबल भूष, अतिबल, अपराजित, नन्दसेन राजा, पद्म, महापदा, पद्म गुल्म, नोल गुल्म, पद्मोत्तर, पद्मासन, फ्य, दशरथ, मेघरथ, सिंहस्थ, धनपति, वैश्रवण, श्रीधर्म, सिद्धास्थ, सुप्रतिष्ठित, आनन्दराय और अन्तिम जिन महाबीर स्वामी, पूर्वभव में नन्द राजा थे। ये सर्व राजाओं में, आदि देव का जीव तो चक्री था और तैबीस महामण्डलेश्वर राजा थे। पीछे कतेक दिन राज्य करि, संसार से विरक्त भए, सो राज्य तज-सज, दीक्षा धरी। सो जिन पैं दीक्षा धरी, रोसे चौबीस-जिन के पूर्व-भव के दीक्षा गुरु, तिन आचार्यन के नाम क्रम तैं कहिये हैबज्रनाभि चक्री ने, बासेन आचार्य ते दीक्षा लई। विमल राजा के गुरु अरिदमन नाम आचार्य, स्वयंप्रम मुनि, विमलवाहन यति, श्रीमन्दिर गुरु, पिहितासव यति, अरिंदाव यति, युगमंधर ऋषीश्वर. सर्व जनानन्द ऋषि, उभयानन्द योगी, वज्रदन्त योगीश्वर, बननाभि, सर्व गुप्त वीतराग, त्रिगुप्त तपस्वी, चितारक्षक गुरु, विमलवाहन गुरुदेव, धनस्थ मुनि, संवर यति, वरधर्म ऋषि, सुनन्द गुरु, आनन्द योगी. वीत शोक प्राचार्य, दामर नाम मुनि और प्रोष्ठल यति-ये चौबीस यतीश्वर जगत् पूज्य हैं। इनके पास चौबीस जिन के जीव ने, पूर्व-भव में दीक्षा धरी थी, सो ये सर्व यति जगत् कर पूज्य हैं । इति चौबीस जिन के पूर्वभव के नाम (४८
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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