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________________ उतारे तथा मुख में जीभक हिलावै, फेरचा करें। दाँतनक होंठ ताई चलावै पद्मासन तिष्ठता, पांव की पगथली छीया करै-मसलै सो निष्ठीवन दोष है। २१ । सामायिक करते नीति करने का स्थान, मल करने का स्थान छोवे, सो अङ्गमरक्ष दोष है ।२२। ऐसे सामायिक के पांच अतिचार तथा बत्तीस और बाईस एते अन्तराय टालि के धर्म फल का लोमी सामायिक प्रतिमा का धारी, अपने व्रत की रक्षा करता सामायिक करै, सो सामायिक कौन स्थान में करे? सो स्थान बताइये है। जहां सूना महल होय, घर-मन्दिर सूने होय तथा बिना धनी के मामत्व रहित जामें कोई का ममत्व नाहीं होय ऐसे मण्डप होंय तथा सिंहादिक के ममत्व रहित गुफा होय। तहां सामायिक करें तथा वन श्मशान भूमि वृक्ष की कोटरन में जिन-मन्दिर इत्यादि राकान्त स्थान शुद्ध देख। जहां अति शीत नहीं होय, अति गर्मों नहीं होय । जहाँ दंश-मसकादि नहीं होंय । जहाँ कोलाहल शब्द नहीं होय । जहाँ काहू का युद्ध नहीं होय, जहां परस्पर काहू के कटुक शब्द नाहीं होय । इन आदिक शुद्ध गफा । सो जीव रहित, वैराग्य भावना के बधावने कू कारण, निर्जन स्थान होय । तहां तिष्ठ के मन-वचन-काय करि एकाग्र, शुद्ध होय । सर्व जीवन तें दया-भाव करि, कोमल मावन सहित, सामायिक करे, सो शुद्ध सामायिक प्रतिमा का धारी, उत्तम श्रावक जानना सो सामायिक समय लंगोट मात्र आदि अल्प-परिग्रह का धारी होय तिष्ठे। चित्त की वृत्ति निर्मल, मुनि समान राखे, अपने तन तैं ममत्त्व-भाव तजि, वैराग्य-भाव का समह मोज-मार्ग के विहार करने की इच्छा का धारक,रोसा साधर्मी श्रावक। नहीं चाहै है च्यारि गति के शुभाशुभ शरीरन का वास तथा अपने पदस्थ से ऊपर के स्थान चढ़वे की है इच्छा जाकैं। ऐसा जगत-सुख से उदासी, श्रावक-धर्म का धारी, तीसरी सामायिक प्रतिमा धारी है।३। इति श्री सुदृष्टि तरंगिणी नाम ग्रन्थ के मध्य में एकादश प्रतिमा के कयन विर्षे तीसरी प्रतिमा का कथन करनेवाला पैतीसवा पर्व सम्पूर्ण भया । ३५ 14 तहां बाग चौथी प्रोषध प्रतिमा, ताकौं कहिये है। सो सर्व पापारम्भ का त्याग करि, शरीर-भोगन की इच्छा । निवार, उदासीन-भाव धारण करि, धबध्यान का अभिलाषी होय, खान-पान का तजन करै। सो प्रोषधोपवासणी है। एक मास विर्षे दी अष्टमी, दोय चतुर्दशी-ये च्यारि उपवास करें सो तेरस के दिन प्रभात उठ, भगवान
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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