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________________ श्री ਇ ४३ गुरु के दिये अक्षर महाविनय तें अङ्गीकार करें है। सो गृहस्थाचार्य या शिष्य कूं शुभलक्षणी विनयवात्सल्यादि गुण सहित जानि, या बालक की अनेक प्रकार परीक्षा करि, शुभ चेष्टा जानि, याकों इस भव- परभव कल्याणकारी सुख 'की करणहारी उत्तम विद्या पढ़ावें हैं । सो प्रथम तौ धर्मशास्त्र, पोछे कर्मशास्त्रन का अभ्यास करावै हैं तहाँ धर्मशास्त्र में प्रथम तौ प्रथमानुयोग पढ़ावें। ताकरि पुण्य-पाप के फलकों जानि, पापकर्मन का फल नरक -पशून के महातीब्र दुख जानि, पाप तैं भय खाय करि, नहीं करना वांछै। पुण्य का फल मनुष्य में चक्री कामदेव नारायण बलभद्र, मंडलेश्वरादि महान राजान के वांछित भोग, अर देवन के उत्तम सुख इत्यादि फला फल जानि, पुण्य के उपाथवे का उद्यम करें। ऐसे पुण्य पाप का स्वभाव जनाथवेकौं प्रथमानुयोग का अभ्यास पहिले ही करावें हैं । पीछे करणानुयोग पढ़ावें । तातें तोनि लोक का स्वरूप आकार-स्वभाव जानें। ताके ज्ञान होतें भोरे जीवन का सा भ्रम नांही उपजै, कि "जो यह लोक काहू का बनाया है। वह लोक का कर्ता चाहे तो लोक समेटि लेय, तौ संसार का अभाव होय, शून्यता होय जाय । तातें यह लोक कृत्रिम है।" ऐसे कोई एक भोरेजीय बालकवत कहे हैं सो तिनके वचन सुन के करणानुयोग के जाननेहार को भ्रम नहीं उपजे । अपने सांचे ज्ञान की चेष्टातें लोक स्वयंसिद्ध जानें। तातें करणानुयोग पढ़ावें। पीछे चरणानुयोग पढ़ावें। ताकर मुनि श्रावकन का आचार जानें। मुनि का निर्दोष भोजन, चालना, बोलना, बैठना आदि यति का आचार जानें तथा श्रावकन का खाना-पीवनादि योग्य-अयोग्य आचार, धर्म सेवनादि क्रिया जानें। तातें अपने ऊँच कुल के ऊँच धर्म, ऊँच आचार के नाहीं तजें। तातें आप म्लेक्ष, अभक्ष्य के खायवे हारन की संगतितें कुआचार नहीं ग्रहैं । तातें चरणानुयोग पढ़ावें । पोछें गुरु पै द्रव्यानुयोग पढ़ें। ताकरि जीव अरु अजोव का भेद जानें। इन जीवअजीव के द्रव्य-गुण पर्यायकों जानें। तातें संसार दशा आप भित्र जानें। अपने तनतें भी जड़त्व भाव जानि एकत्व तजैं। तन-धन कुटुम्बादि का वियोग होते अज्ञानी मोही जीवन की नांई दुखी नहीं होंय, तातैं द्रव्यानुयोग पढ़ावें । ऐसे धर्मशास्त्र का रहस्य जनाथ धर्मसम्बन्धो भरम खोदें। ताके प्रसाद मिथ्या धर्म नहीं रुचै। सद्धर्मअङ्गीकार करि परभव सुधारें। पोछे कर्मशास्त्र पढ़ाये, तहाँ ज्योतिष निमित्तशास्त्र, वैदिक, चित्रकला, संगीतकला, शिल्पशास्त्र, कोकशास्त्र, पिङ्गलशास्त्र, छन्दशास्त्र, रतनपरीक्षा, धातुपरीक्षा इन आदि अनेक देश ४३ ਰ रं गि गी
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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