________________
और पाप मिलाये नव पदार्थन का कथन जिस शास्त्र विष होइ. सो धर्मशास्त्र है। इन सप्त तत्त्वनि को विशेष भेदाभेद चर्चा करनी सो फ़ल कथा है। आगे अनेक दृष्टान्त, जुगति व नाना प्रकार नयन करि मिध्यात्व नाश || ४२ | करना, धर्म साधक पापकर्म नाशक अनेक अलङ्कारन का कथन जिन शास्त्रन में होय सो धर्मशास्त्र हैं। अपनी
बुद्धि करि धर्म स्थापन के, पापमग छेदन कू, दृष्टान्त जुगति देय प्रश्न-उत्तर करि चर्चा करना, सो प्रस्ताव कथा है। मेले माहे सात भेट किया नेहमत कथाजा शास्त्र में कथन होय, सो धर्मशास्त्र कहिये । जहाँ इन सात कथा रहित कथन सहित शास्त्र हो सो मिध्यात्वमयी शास्त्र सामान्य जानि तजना योग्य है। तातै शुभ सात कथा हैं सो इन बिना, विषयन के कारण, हिंसा के बंधावनहारे, मिथ्यासरधान के करावनहारे जो शास्त्र हैं सो लोक कथामयो विकथारूप हैं। भो भवि हो, इस शास्त्र विर्षे सातौं ही कथान का रहसि पाइये है। सर्व प्रकार धर्मकथा धर्मफल दाता है तातें धर्मात्मा जोवनकों इस ग्रन्थ का अध्ययन करना योग्य है। ३। इति श्री सुदृष्टि तरंगिणी नाम ग्रन्थ वि इष्टदेव नमस्कारपूर्वक, ग्रन्थ करने की प्रतिज्ञाकों लिये, अपनी आलोचना सहित सम्यक्त्वके पच्चीस दोष कथन सहित आदि मंगल षट् भेद लिये, सात भेद धर्मकथादिक वर्णन करनेवाला, तीसरा पर्व पूर्ण भया ।३।
आगे कहिये है-जो मोक्षमहल के चढ़वेकों सोपान तथा शिवरूपी कल्पवृत्त ताका मूल ऐसा सम्यग्दर्शन ताकी उत्पतिको कारण तत्त्व-मैद है। सो जिन देव करि कहे जीवतव, अजीवतत्त्व इन दोय भेद मई है। सो एक तो चेतना लक्षणकों लिये देखने-जानने हारे जीवतत्त्व हैं। एक अजीवतत्त्व, सो जड़ हैं सो चेतना गुण का धारक आत्मतत्त्वज्ञानी के मोरा होय है। सो तिनकी उत्पत्ति कहिये है। जो उत्तम तोनिकुल के उपजे सुभाचारी बालक, तिनको तिनके माता-पिता महाधर्मी, सो अपने कुल के आचार धर्मपराम्पराय चलावेकों, अरु पुत्र को इहाँ जस अरु परभव सुखी होनेकों, पुत्र पर स्नेह दृष्टि करि, पुत्र को पाँच-सात वर्ष की अवस्थातें विद्या का अभ्यास करावने कं गृहस्थाचार्यन पर पढ़ावें हैं। कैसे हैं गृहस्थाचार्य, महाधर्म के धारी सर्व धर्मकला विष प्रवीण हैं, अनेक शस्त्र-शास्त्र विद्या के वेत्ता हैं, महादयालु हैं, कोमल हैं, सौम्यमूर्ति, शुभाचारी हैं। ऐसे उत्तमगुण सहित, निर्मलचित्त, महापंडित, तिनपर भले श्रावकन के बालक पठन करें हैं। सो वह सुबुद्धि,