SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 506
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Ys भयानक, राग भरे वचन कहना, भय बतावना, पर को लोभ बतावना, काय मोड़ना आदि अनेक कुचेष्टायें लिये, काम-विकार सहित बोलना, सो कन्दप नाम अतिचार है।। जहां कौतुक लिये मदोन्मत्त भया, हाँसि सहित भण्ड-वचन बोलना। गालि कादिनमयी हाँसि वचन, शील खण्ड पाप रूप वचन, काम-चेष्टाविकारमयी आलस का लेना, दीर्घ उच्छवास का करना। अपने शरीर के गढ़ चिह्न प्रगट करि, अन्य कौं दिखावना, सो कौत्कुच्य नाम अनर्थदण्ड दोष है। २ । जहाँ प्रयोजन रहित वृथा वचन भाण्डवत बोलना, सो धर्म-कर्म रहित बिता प्रयोजन ही सप्तको नाई वचन बोलना, सो मौखर्य नाम दोष है।३। जहां हिताहितज्ञान रहित, अविचार सहित, मुर्ख वचन भाखना ताकौं सनि, वे प्रयोजन बहुत जीव द्वेष भाव करें। मुरस्त्र कहैं, निन्दा पावे इत्यादिक द्वेष उपजावनहारा, बिना प्रयोजन वचन बोलना, सो असमीक्ष्याधिकरण दोष है।४। जहाँ संसार विर्षे अनेक भोग वस्तु, अनेक उपभोग योग्य वस्तु, नाना प्रकार इन्द्रिय सुस्त । देव, इन्द्र, चक्री, कामदेव, भोगभूमियों इत्यादिक पुण्याधिकारी जीवन के भोग योग्य वस्त, तिनके भोगने की अभिलाषा करनी, सो पुण्य तौ होन, जो उदर पूरणा ही होती नाहीं। इन्द्रिय सुख भोगने की इच्छा-देव-इन्द्र की-सी राखना तथा पराया राज्य-भोग देख, पुण्य-रहित ऐसा विचारै। जो ये राज्य नहीं करि जाने। अरु राज्य-लक्ष्मी नहीं भोग जाने। अरु ये हस्ती, घोड़ा, पालकी पै नहीं चढ़ जाने। प्रजा नहीं पाल जाने। जो रोसी राज्य-लक्ष्मी मोकों मिले, तो मैं ऐसे राज्य करौं। रोसे हस्तो, घोटक, रथ, पालकी पर चढ़ों। ऐसे राज्य-लक्ष्मी भोग इत्यादिक पुण्य रहित होय, अर्थ रहित विचार, सो भोगोपभोग (अति प्रसाधन) नाम दोष है। ५। इति तीसरा अनर्थदण्ड त्याग गुणव्रत ।२। | इति श्री मुदृष्टि तरंगिणी नाम ग्रन्थ के मध्य में थावक धर्म प्ररूपण साप, एकादश प्रतिमा विर्षे, दूसरी त प्रतिमा के बारह व्रतन में, तीन गुणत अतिचार सहित कथन वर्णन करनेवाला तेतीसा पर्व सम्पूर्ण भया ॥ ३३ ॥ आगे च्यारि शिक्षाव्रत कहिये है। प्रथम नाम–सामायिक, प्रोषधोपवास, भोगोपभोग परिणाम और अतिथि संविभाग। इनका अर्थ-सामायिक के दोय भेद हैं। एक द्रव्य-सामायिक और दूसरा भाव-सामायिक । तहाँ सामायिक करते विनय सहित, समता लिये,शान्त मुद्रा धार, कायोत्सर्ग तथा पद्मासन तिष्ठ, शुद्ध सामायिक-पाठ ४९८
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy