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________________ श्री सु इ ष्टि ४९७ सहित व्यापार का करना तथा परकौं ताका उपदेश देना तथा परकौं पाप व्यापार वाणिज्य का उपाय बतावे कहै कि शीशा, शोरा. शहद, नील, अदरख – इनका वणिज करने मैं, बड़ा नफा है। सन, साजी, लूरा (नमक), चर्म - इनके व्यापार में विशेष नफा है इत्यादिक पाप-व्यापार का उपदेश देना, सो अपध्यान नाम अर्थदण्ड है | ३| हां स्वेच्छया - अर्थात् कल्पना करि कामी जीवनको विकार-भाव करिवेकूं, कवीश्वरों बनाये जो श्रृङ्गार शास्त्र, जो राग- मालादि रसिक प्रिय सुन्दर श्रृङ्गार इत्यादिक शास्त्र, जिनको सुनि भोले मोही जीव अपने भाव काम-चेष्टा रूप करि, पर-स्त्री आदि भोगने की अभिलाषा करि, पाप बन्ध करें । जिन शास्त्रन में पर- स्त्री सेवने में पाप नहीं कह्या विधवा स्त्री को घर में रख, उससे काम सेवन में पाय नहीं कह्या होय इत्यादिक कामी जीवन कूं मोह उपजायवे कू, अपने-अपने विकार भाव पांषिवकू, जे शास्त्र का कथन करना, सी अनर्थदण्ड है। लोभी कवीश्वरों ने अभक्ष्य भोजन में पाप न कह्या । मद्य-मांस के खावने के अभिलाषी जीव, तिनके राजी करवैकूं बनाये जो कल्पित अपनी मति अनुसार शास्त्र तिनमें हिंसा का पाप नहीं । मद्य, मांस, मधु खावने का पाप नहीं कह्या होय, सो कुशास्त्र अनर्थदण्ड है । जिनमें नाहर, सुअर, हिरण मारने का पाप नहीं कला, वनस्पति छेदने में पाप नहीं कह्या । अनगालै जल पोवने, सपरने में पाप नहीं कहा। ऐसे जो कषायो जीवन के बनाये कल्पित शास्त्र, परम्पराय योगीश्वरों की आम्रा रहित कल्पित शास्त्र करें, सो अनर्थदण्ड है। जिनमें जादू करना, वशी करना, पर-मोहन, ऐसे कल्पित मन्त्र, यन्त्र तन्त्र, स्तम्भन इत्यादिक चमत्कार बतावने का कथन करि, भोरे जीवन कूं आश्चर्य उपजावना | ऐसे कल्पित स्वेच्छा शास्त्र का जोड़ना, सो दुःश्रुति नाम अनर्थदण्ड है । ४ । प्रमाद सहित. ईर्ष्या-भाव सहित, शीघ्र - शीघ्र चलना । त्रस जीवन को विराधना सहित अदया भाव करि चलना । बिना प्रयोजन पृथ्वी, अप्, तेज, वायु, वनस्पति आदि का छेदना । इसी का नाम प्रमाद-वय्यां अनर्थदण्ड है । ५ । ऐसे इन पांच मेदमयी अनर्थदण्ड है, सो याके पांच अतिचार हैं। सो हो कहिये हैं। प्रथम नाम — कन्दर्प, कौरकुच्य, मौर्य, अति प्रसाधन और असमीक्ष्याधिकरण । इनका अर्थ --तहां काम चेष्टा सहित, काय का स्फुरावना । नेत्र की चेष्टा, विकार रूप करनी। मुख, विकार रूप करना । काम पोषक, शील भञ्जक, だる ४९७
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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