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________________ Y३ कर, तहा जपन तन का सावधानां कर। जहां जल, तृण, अन्न की प्रचुरता होय, तहाँ मुकाम करें तथा सेन्या के । सोमाकी रक्षा करें। जहां उंरा होय, तहाँ अपने तन के मोही सेवक सुभट तिनके डेरा अपने चौ-तरफ राखि, । अपने तन की रक्षा देख, मुकाम कर इत्यादि सावधानी राखनी। सो आसन गुण कहिए। ये जासन गुरा है।। || आगे संस्था गुण कहिए है। संस्था गुण ताकौं कहिये जो अपने मुख से वचन बोलना, सो फेरि अन्यथा नहीं होय । वचन को दृढ़ता राखनी जो वचन बोल्या, सो ताकी मर्यादा निवाहनी। तन गये भी जो वचन कह्या ताका नहीं उल्लंघिये। जैसे-दशरथ राजा ने अपनी रानी कैकई को वर दिया सो समय पाय वान पुत्र-भरत कुं राज्य याच्या। सो अयोध्या का राज्य भरत कू देय, वचन राख्या। सेसे हो राजान को अपने वचन की दृढ़ता राखनी, सो संस्था गुरा है। ये वचन-दृढ़ का गुण राजा में नहीं होय, तौताको प्रजा दुःख पावे। अन्याय विस्तरे। राजा का वचन प्रतीति रहित भये, अपयशादि दोष प्रगटै। तातै वचन सत्य बोलना, सो संस्था गुण है। इति संस्था गुण । ५। जागे जाश्रय गुण कहिये है सो राजान में आश्रय गुण चाहिये। कोई भयवन्त होय, जोरावर का सताया, अपने आश्रय आवे तो आप ताकुंजपने शरश राखें । सन्तोष उपजावै तथा आप भय आये, आपत प्रबल होय ताके आश्रय जाय, सुखी होना । सो अपने से बड़े के शरण जावे में, अपना मान खंड नहीं मानना और अन्यकं अपने बाश्रय राखने में काहू का भय नहीं करना । ये आश्रय नाम गुश है। ये गुण नहीं होय, तो महिमा नहीं पाये। तातें आश्रय गुरा राजान में चाहिये। इति आप्रय गुरा।६।ऐसे राजाओं के षट गुण जानना। आगे राजाओं के सीखने योग्य च्यारि विद्या है, तिनका कथन कहिये है। प्रथम नाम---पानीष को विद्या, त्रयी विद्या, वार्ता विद्या और दण्डनी विद्या-ये च्यारि विद्या हैं। अब इनका सामान्य स्वरूप कहिये है। जैसे-जौहरी अपनी बुद्धि के योग तें, भले-बुरे रत्न कुंजानैं। तैसे हो विवेको राजा, प्रथम तो अपने-पराये बल-पराक्रम को जानै । ऐसा विचारै, फलाने राजा का पराक्रम ऐसा, उस राजा की सैन्या इतनी, भुजबल ऐसा, वाके राता मुल्क ऐसा खजाना है। ऐसे-ऐसे सामन्त राजा ताके सेवक हैं। ऐसे बुद्धिमान् मन्त्री हैं और मेरे शरीर का जोर एता है, मेरा राता मुल्क है, राता खजाना है। एते सामन्त-सेवक हैं। रीसै मन्त्री हैं इत्यादिक मेद जाने, सो विवेकी राजा है और जो अपने-पराये पराक्रम विर्षे नहीं सनम, तो आप से बड़े बलवान् राजा ते द्वेष करि, त
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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