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________________ देय राठी कोजिया हस्ती-चोटकादि दोजिये । अपने घर का उत्तम रतन-धन दीजिये । ताकी विनय कीजिये। || || ताको सेवा चाकरी कीजिये । जैसे बने तसे, प्रबल वैरी को राजी कीजिये । तासों स्नेह होय, सोही कीजिये। ताका नाम सन्धि नामा गुण है । सो जो विवेको राजा-मन्त्री, भली बुद्धि कौं धरैं हैं। सो इस सन्धि गुणकौं । अवसर पाय प्रगट करि अपना राज्य राख, सुखी होंय हैं और ये सन्धि गुण जामें नहीं होय, तो अपने तें | विशेष जोरावर राजा ते युद्ध करि, रावरा को नाई मरण पावै। कुल का, तन का, धन का क्षय होय । राज्य जाय दुःखी होय । जातें विवेकी राजा हैं है कोई रोसे ही द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, जान के इस सन्धि गुण के बल करि वैरो कौ उपशान्त करें हैं। आप ते जोरावर राजा ते शोश नमावते, उसकी सेवा करते, अपना मान-खण्ड नहीं माने। बलवान-सेवा, अपनी रक्षा का कारण जानि, सन्धि करें हैं ये विवेकी राजा का धर्म है। इति प्रथम सन्धि गुण । ३। आगे विग्रह गुण कहिये है। तहां और कोई राजा प्रबल-वैरी धीठ बुद्धि होय। धन देते, देश देते, चाकरी कबूल करते, हस्ती-घोटकादि देते इत्यादिक विनय करते जो वैरी उपशान्त नहीं होय, तो पीछे युद्ध करै। युद्ध में शंका नाही करै। निःशङ्क होय वैरी ते युद्ध करै। अपना पुरुषार्थ-पराक्रम प्रगट कर । सो विग्रह नाम गुण है। २। अागे यान गुश है सो कहिय है। जे महान् वंश के उपजे राजकुमार, तिनकौं यान गुण में प्रवीणपना चाहिये। सो ही बताईए है। हस्ती की असवारी, गज का जोतना, गज क्रीड़ादि में गज को चलावना, अपने वश हस्ती करना। इन आदि गज-असवारी में सावधान रहना और घोटक बढ़ना, दौड़ावना दुष्ट अश्व को वशीभत करना इत्यादिक घोड़े की असवारी में सावधान होय तथा रथ के चलावे में सावधान होय। रोज की असवारी जाने, सिंह को असवारी जाने। करहा सांड की असवारी करना जाने। महिष की असवारी, वृषम की असवारी, गैंडा की असवारी इत्यादिक असवारिन में प्रवीणता, सो यान गरा है। सो ये गुण राज-पुत्रन में अवश्य चाहिरा । ये गुण नहीं होंय, तो युद्ध हारें और अन्य राज-पुत्रन में जांय, तौ लजा पार्वे) तातें यान गुरा चाहिए। इति यान मुश। ३. आगे आसन गुरा कहिश है। राजान में आसन गुण चाहिये। तहां बैठवे की दृढ़ आसन चाहिए । जहां तिष्ठ, तहां राकासन दृढ़ होय बैठे, चलाचल आसन नहीं रासे । कबहूँ कहीं, । कबहूँ कहीं ऐसे चञ्चल भाव नहीं होय । एक स्थान दृढ़ होय तिष्ठ तथा देशान्तर गमन करते जहां मुकाम 629
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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