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________________ कर दर्शनावरण नव, वेदनीय दोय, मोहनीय चौबीस, आयु, नीच, गोत्र, अन्तराय पांच ए सात कर्म की सैंतालीस। आगे नाम की-तहां वर्ण की च्यारि, संस्थान, गति, गत्यानुपूर्वो, शरीर तीन, रकेन्द्रिय जाति, तीर्थङ्कर बिना | अगुरु अष्टक को सात, दश दुक की पन्द्रह ऐसे नाम-कर्म तेतीस सर्व मिलि एकेन्द्रिय के उदय योग्य प्रकृति अस्सी। अब विकलत्रय के उदय योग्य प्रकृति कहिये हैं। सो एकेन्द्रिय के उदय योग्य में तें सूक्ष्म, साधारण स्थावर, भातप रा च्यारि तौ कादिरा। अरु संहनन, अंगोपांग, चाल, स्वर, त्रस ए पांच मिलाइये तब विकलत्रय के उदय योग्य प्रकृति इक्यासी। ऐसे कहे जो सामान्य भाव च्यारि गति सम्बन्धी उदय सो प्रकृति उदय कहिये और सपा-बसर चे जय बाय तक कि प्रकृतिन के संग जेती-जेती प्रमारा कर्म उदय बाय खिर सो प्रदेश उदय है। सो हो संक्षेप दिखाइये है। तहाँ एकलो अणु का नाम तौ वर्ग है। अनन्त वर्ग का समूह सो वर्गखा है और असंख्यात लोक प्रमाण वर्गणा स्कन्ध मिलाइये तब एक स्पर्धक होय । ऐसे पसंख्यात लोक प्रमाण स्पर्धक मिलाइये तब एक गुण हानि होय। ऐसे असंख्यात लोक प्रमाण गुण हानि को मिलाइये तब एक नाना-गुण हानि होय। ऐसे असंख्यात लोक प्रमाण नाना-गुण हानि को मिलाइये तब एक अन्योन्याभ्यस्त राशि होय । ऐसी असंख्यात लोक प्रमाण अन्योन्यभ्यस्त राशि स्कन्ध मिलाइये तब एक प्रकृति होय। ऐसे उदय योग्य प्रकृति तिनके साथ औते प्रदेश उदय आय सिरे सो प्रदेश उदय है और जिस प्रकृति की जेती जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति थी तिनमैं तें जो समय घाटि उदय पावै सो स्थिति उदय है और जिस प्रकृति के उदय होते जो शुभाशुभ रस का प्रगट होना सो अनुभाग उदय कहिये। ऐसे सामान्य करि च्यारि प्रकार उदय कह्या ।। अब सावकरण कहिये है। तहां ऊपरि कहि आरा जो बन्ध सो कर्म बन्धे पोछे जेते काल उदय होय नहीं खिरें। आत्मा के से एक क्षेत्र कर्म रहैं। सो सत्त्वकरण है । सो सत्त्वकरण भी चारि प्रकार है। प्रकृति, प्रदेश. स्थिति और अनुभाग।। तहा प्रथम ही प्रकृति सत्त्व कहिये है। सो सत्त्व योग्य प्रकृति एक सौ जड़तालीस हैं । सो नाना जीव नाना काल अपेक्षा हैं और एक जीवकै एकै काल तीन आयु बिना भुज्यमान आयु सहित एकसौ पैंतालोस का सारव है और | भुज्यमानवारे के तीर्थक्कर बिना एकसौ चवालीस का सत्त्व है और कोई के तीन आयु. आहारक चतुष्क व तीर्थकर बिना एक सौ ४० का सत्त्व है। किसी के आहारक चतुक, तीर्थकर और वध्यमान आयु सहित ३०२
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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