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________________ एक सौ छयालीस का सत्त्व है। एक सौ अड़तालीस मैं ते बद्धयमानवारे के तीर्थङ्कर और दोध आयु इन तीन बिना, एक सौ पैंतालीस का सत्व है। किसोक आहारक चतुष्क, तीन आयु इन सात बिना एक सौ इकतालीस का सत्व है और आहारक चतुष्क व दोय वायु इन षट् बिना कोई बद्धयमान आयुवारे के एकसौ ब्यालीस का सत्य है। ऐसे अनेक प्रकार नाना जोव सत्त्व पाइये । ताका सामान्य कथन कह्या । सो याका नाम सत्त्वकरण है।३। और जैसे-कच्चे आमों की पाल-पत्ता देय, सिताब (जल्दी) पकाइये। तैसे ही जिस कर्म की स्थिति बहुत होय, ताको बलात्कार तप-संयमादि करि, ताकी स्थिति घटाय उदय काल में लावना, सो उदीरणा में। भावार्थ-जो कर्म की बहुत स्थिति कू घटाय, थोड़ी करि, खेरना सी उदीरणाकरण है। ४ । जिन कर्मन को बहुत स्थिति थी सो तिनके निषेक, नोचले थोरीसी स्थितिवारेन में | मिलाय, उदय मैं ल्यावना, सो अपकर्षण है। ५। जिन कर्मन की स्थिति थोरी थी, तिनके निषेक नीचले तें लेय, ऊपरले बड़ी स्थिति के निषेकन में मिलावना, सो उत्कर्षण है। भावार्थ-जा कर्म की स्थिति थोरी थो ताकी बड़ी करना, सो उत्कर्षण है। ६ । आगे शुभ मावन ते पुण्य प्रकृति बांधी थीं ताके निषेक पाप परिणामन तैं पाप प्रकृति रूप करना तथा आगे अशुभ भावन ते पाप प्रकृति बांधी ताकौ शुभ भावना के फल ते पल्टाय पुण्य प्रकृति रूप करना, सो संक्रमण है । ७ । कर्म उदयावली वांझि है । सो उदयावली में कर्म कोई उपाय तें नहीं आवै, सो उपशान्तकरण कहिये।८। जिन कर्मन के परमाणु संक्रमण नहीं होय तथा उदयावली में नहीं आवै । सो याका नाम निधत्तिकरण है । है । जा कर्म के परमाणु उत्कर्षण जो कर्म स्थिति का बढ़ावना, अपकर्षण जो कर्म स्थिति का घटावना, संक्रमण जो कर्म को और रूप करना, सो जामें तीनों ही नहीं होय उदयावली में नहीं आवै। जिस अंशन करि बन्ध्या है, तिन ही ग्रंशन करि उदय आवै। सो निकाचित नामकरण है। ३०। ये दश करस हैं। इनकी जान कर्म की अवस्था भले प्रकार जानी जाय है । ऐसा जानना । इति दशकरण । विशेष इनका श्रीगोम्मटसारणी तें जानना । ऐसा करण का ३८३ स्वस्व मध्याहन गय जान स्वरूप, मिथ्यात्व गये जानिये है । सो मिथ्यात्व का स्वरूप कहिये है। मिथ्यात्व के दीय मेद हैं। सादि । मिथ्यात्व और अनादि मिथ्यात्व । सो जीव के अनादिकाल संसार भ्रमण करत, कबहुं भी सम्यक्त्व का
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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