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________________ भगवान के वचन को धुनि सुतिते ही श्वा प्रविन होंश का नाश होय । तत्वज्ञान के भेद को दिखावै है। रोसे भगवान अन्तरजामी के वचन, अतिशय सहित हैं और इन्हीं भगवान के वचन-प्रमाण अर्थ को लिए, च्यारि ||सा | ज्ञान के धारी गराधर देव के वचन प्रमाण हैं। ए वचन अतिशय सहित हैं। तात सत्य हैं और इनहीं गशधर देव के वचन-प्रमाण अर्थ सहित प्रलपे जो आचार्य, उपाध्याय, साधु, मुनिराज इन योगीश्वरों के वचन है, सौ अतिशय सहित हैं। तातै प्रमाण है और इनहीं आचार्यन के अर्थ कू लिये, इनके प्रमाण कू लेय भाषे, पञ्चम गुणस्थान धारी श्रावक तिनके वचन, अतिशय सहित हैं। तातै प्रमाण हैं और इन्हों केवली, गणधर, आचार्य इनके भाषे अर्थ, तिनही प्रमाण अर्थ का धारण करशहारे चतुर्थ गुणस्थान के धारी सम्यग्दृष्टि जीवन के वचन, देव-गुरु के कहे अर्थ प्रमाण हैं । ताते अतिशय सहित हैं। रोसे जिन वचन, गणधर वचन, आचार्य मुनि के वचन, श्रावक सम्यक धारी के वचन, असंयमो यती के वचन-ए सर्व सम्यादर्शन के धारी हैं। सो इन सर्व के वचन यथायोग्य अतिशय सहित हैं । सोही कहिरा हैं । केवली तीर्थङ्कर के वचन, अनक्षर मैघ-ध्वनि समानि हैं । तिसके सम्बन्ध से देव, मनुष्य, तिर्यश्च-ए तीन गति के जीव इनके श्रवण निकट तिष्ठते पुद्गल स्कन्ध, सो अक्षर रूप सहज ही परिणमें हैं। ताकरिए सर्व उन्हें अपनी भाषारूप समझ लेय हैं। ऐसा अतिशय तो भगवान के वचन विर्षे है और गराधर देव के वचन, अक्षर रूप हैं। सो तिनका विश्वास तीन लोक के जीवन को होय। तिनके श्रवण किए, पाप का नाश होय । रोसै इन गराधर देव के वचन का सहज स्वभाव हो है । ऐसे अतिशय गणघर देव के वचन का है । मुनीश्वरों के वचन राग-द्वेष रहित, सरल, मिष्ट, सर्व जीवन कू सुखकारी हैं। तातें इनकी भी प्रतीत कर, सर्व जीव-धर्म-सन्मुख होय। ऐसा अतिशय, मुनि के वचन का जानना और प्रावक-व्रती अरु असंयत सम्यग्दृष्टि, ए भी केवली के वचन-प्रमाण अर्थ कूलिए उपदेश करें हैं। तातै इन तत्त्वज्ञानी के वचन भी सर्व धर्मो जीवन कं, प्रतीति उपजा हैं । तातै र भी अतिशय सहित हैं और मिथ्यादृष्टि वचन जिन-भाषित-अर्थ रहित हैं। तात असत्य हैं। अतत्व के प्ररूपण हारे, राग-द्वेष सहित हैं। तारौं अतिशय रहित है। अप्रमारा है। रोसा जानना । जैसे-राजा का वचन जो निकसै, सो सर्व को प्रमाण है। सत्य है। सर्व अङ्गीकार करें । भूप का वचन उल्लघन किये दण्ड पावै दुःखी होय । भूप की आज्ञा माने, सुखी होय । तैसे सर्वज्ञ भगवान्, जगत् है। सर्व अङ्गीकार करें। औरणी
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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