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________________ कु सु fice ३६७ का राजा । ताके वचन प्रमाण चालै सुखी होय। जिन वचन उल्लंघन किए, पाप-बन्ध होय । दुःख उपजे । तातें राजा का वचन अतिशय सहित है और रङ्क का वचन अतिशय रहित है। रङ्क काहू के ऊपर कोप करें, तो कछु होता नाहीं तथा कोई पर राजी होय, तो कार्यकारी नाहीं । रङ्क कहै, तेरा घर लूट लेहों । तो यातें घर लुटता नाहीं और रङ्क कहै कि राज पद दे देहों तो राज्य मिलता नाहीं । तातै रङ्क का शुभाशुभ वचन बोलना, वृथा है। रज के वचन में अतिशय नाहीं । तैसे ही अतिशय रहित मिध्यादृष्टि के वचन असत्य, अप्रमाण रङ्क के वचन समान निरर्थक, पापकारी, अतत्त्व श्रद्धान सहित हैं। तातें मिध्यादृष्टि, मिथ्या श्रद्धानी के वचन अप्रमाण पापकारी जानि, ग्रहण नहीं करिये। ए भलै फल रहित, सुखकारी नाहीं । जैसे—कोऊ राजा की सेवा करि ताक राजी करिए तो राजी भए कबहूं दारिद्र खोवें। धन देय, ग्राम देव, सुखी करें। तातें राजा की सेवा तो.. शुभ फलदायक है और कोई रङ्ग को अनेक प्रकार सेवा करि, रङ्क कूं रिझाय, राजी करें तो सेवा का फल वृथा जानना । वह रङ्क आप हो दरिद्री भूखा है, दुःखी है। तो और को कहा सुखी करेगा ? तैसे हो तीन लोक के राजा इन्द्र, चक्री, धरणेन्द्र हैं... सी. इन राजान के राजा को सुखी होंय । तिनके वचन प्रमाण करि चार्ले, तौ देव सुख, इन्द्र सुख, चक्री सुख, खगपति सुख, मण्डलेश्वर राजा आदि अनेक पद के सुख निश्चय ही पावै है और मिथ्या श्रद्धानी के वचन प्रमाण चालें, तौ सुख नाहीं। ऐसा जानि मिध्या वचन, शुभ भावना रहित, इनका विश्वास नहीं करना। ए अतिशय रहित हैं। सम्यक् सहित श्रद्धावान के वचन सुखकारी हैं। ए अतिशय सहित वचन जानना । इति श्री सुदृष्टि तरंगिणी नाम प्रन्थ के मध्य में हितोपदेश का कथन करनेवाला छवीस पर्व सम्पूर्ण भया ॥ २६ ॥ आगे षट् लेश्या कथन बताईये है गाथा - किन्हं गोल पोतय असुह लेब्साह जीय पक्ामो पोता पम्मा सुक्का ये सुह लेस्साय होय खण भैया ॥ ११५ ॥ अर्थ – कृष्ण, नील, कापोत—ये तीन अशुभ लेश्या हैं। पीत. पद्म, शुक्ल — ये तीन शुभ लेश्या हैं। भावार्थऐसे जीव के अशुभ शुभ परिणाम पर षट् भेद लैश्या के हैं। योग अरु कषाय के मिलाप तं शुभाशुभ जीव की परिणति का होना सो लेश्या है। सो इनका स्वरूप कहिये है। जहां बड़ा क्रोधी होय । वैर नहीं तजै । पर के ८ ६६७ for 5
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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