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________________ EPA4 नहीं आचरण किया परिणति विर्षे धर्म की अभिलाषा रूप नहीं भया । तो ऐसे आगम के अभ्यास का खेद । वृथा हो गया और आप समान सर्व षट्कायक जीव हैं ऐसे भेद का बतावनहारा शास्त्र तिनका अभ्यास । करि सुनिक भी सर्व आकुलता रहित शान्त रस करि भर या समता समुद्र ताका अर्थ रूपी अमृतकुं पोय || सन्तोषकुं नहीं पाया । तो ऐसे शास्त्रन के अभ्यास कति पुर. जो. खेद सोही और कनाल भो । विर्षे धरनहारा पर-वस्तु ते खेद-छुड़ाय निर्बन्ध करनहारा ऐसे शास्त्र तिनके अभ्यास करके भी आत्मिक रस पाय निराकुल दशा नहीं करो तो शास्त्रन के अभ्यास का खेद करि किन सिद्ध नहीं भया । भो भव्य ! शास्त्रन का अभ्यास करि नाना प्रकार पठन-पाठन करि अनेक शास्त्र गुरुन के मुख से सुनि तिन करि अक्षर-ज्ञान तो बहत किया, वाचना मले प्रकार सीखा, अनेक छन्द, काव्य, गाथा, संस्कत, प्राकत कर दे भाषा करि उपदेश देना भी सीखा इत्यादिक चतुराई तो तैंने सोखो। किन्तु वैराग्य भाव न बढ़ाया। पाप तज धर्म दयामयी नहीं सुहाया और क्रोध-मानादि कषाय बुझाय शान्ति सुधा रस नहीं पिया तो शास्त्र का पठन-पाठन वृधा हो गया। सम्यादृष्टि के मूल अनुभव का फल स्वभाव-पर-भाव का निर्धार ए सर्व ऊपर कहे जो गुण सो सर्व प्रात्म-कल्याण के कारण हैं । सो शास्त्राभ्यास ते होय हैं । शास्त्रन का अभ्यास करि अनेक जीव मोक्ष-मार्ग जानि समता भाव धरि मोक्षकं पहुंचे हैं। ऐसे शास्त्रन का अभ्यास करि अनेक खेद पाय पठन करि ऊपर कहे गुण ता प्राप्त नाही भया तो सर्व खेद वृथा हो गया । जो शास्त्राभ्यास ते वैराग्य नहीं भया धर्म अच्छा नहीं लाग्या नहीं शान्त भाव मये तो तेरा शास्त्राभ्यास का शब्द ऐसा भया जैसा दीरघ शब्द करि काक उकलावे है । तेसे इन गुण बिना शास्त्र के वाचने का शोर काक शब्दवत् जानना । आगे मरण हू ते अधिक निद्रा को बतायें हैंगाथा-णिदा मात्र समाणो, मीत्रीय मभवान्त होई इकबारणिदो छिण-चिम घादय गाण आदाए देयगय अमहो ॥१०॥ ___ अर्थ-जिंदा मीच समायो कहिये, निद्रा तो मौति समानि है । मीचीय गभवान्त होइ इकवारऊ कहिये, मौत एक भव में एक बार होय। णिन्दो छिण-छिण घादय कहिये. निद्रा चिन-छिन घात करे है। साथ प्रादाय कहिये, इस प्रकार जात्मा के ज्ञानकू घात कर। देय गय असुहो कहिये, अशुभ-गति देय है। ४५
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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