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________________ कम्झ, पाता-हिला, पुलगाई.की इत्यादिक सजन स्नेही बन्धुओं के समूहकों सुख उपजावे ऐसा वचन बोले | ३५२ सो तो विवेकी है और बन्धु-विरोध बोलना जो थे सर्व कुटुम्ब मोर्को हन्या चाहै है। मैं जानूं हूँ मोहि देखि नाहीं सके हैं। मेरे सर्व द्वेषी हैं। सो मेरो दाव लगेगा तो मैं भी सर्व का घात करूँगा तथा मेरे इन कहा अटक्या ? मेरे पास धन होयगा तो आप ही आय मेरे पायन परेंगे। इत्यादिक जिनक सुनि सर्व कुटुम्बक दुःख होय। जिन करि सर्व कुटुम्ब का मान खण्डन होय रोसे कुटुम्ब दुःखदायक वचन बोलना, सो मूर्खता है। तात कुटुम्बविरोधी वचन नहों कहिए। ऐसे धर्म-सभा, राज-सभा, पंच-सभा, जाति-समा, लौकिक-समा, बन्धु-सभा इतने स्थान कहे तिनको दुःखदाई समा विरोध वचन बोलै तौ इस समा विर्षे पंच निन्द्य होय, लोक निन्ध होय, बन्धु वर्ग करि निन्ध होय, ये तीन निन्दा लेय पोछे जीवना वृथा है। ऐसा पुरुष जीवता ही सर्वकं मृतक समान मासै है। ताकरि तो यह भव बिगड़ जाय है और राज-सभा विरुद्ध तें तन का घात, धन का घात होय ऑगीयांग छैदन होय इत्यादिक होय और धर्म-समा विरोध तै पाप-बन्ध होय ताकरि नरकादि दुर्गति के दुःख पावै तातें धर्मात्मा विवेकी दोऊ भव के सुख यश का अभिलाषी होय तिनको रोसा वचन हित-मित सर्वकू हितकारी बोलना। ऐसा जानि विरुद्ध वचन का त्याग करना योग्य है। आगे शास्त्राभ्यास करिकै एते गुण नहीं भये तो वह शास्त्र के अभ्यास का शब्द काक के समान है। ऐसा बतावे हैंमाथा-सुत सुणि पश्रण णयोगा धम्मो णय सांतरसपाणो | तळपयण किंहकाजउ वायसइव घुणि पाणि उयलायो ॥१०॥ अर्थ—सुत सुरिण कहिये, शास्त्र सुनि। पथरा कहिये, पठन करि गयोगा कहिये, नहों वैराग्य । धम्मो !! कहिये, नहीं धर्म। रायसांतरसपाणो कहिये, नहीं शान्ति रस का पान । तऊ पथरा किंह काजउ कहिये, सो पठना किह काज है ? वायस इव कहिये, काक को नाई। धुरिणथाणि कहिये, धुनि करि। उयलायो कहिये, उकलाया। भावार्थ-यह जिनेन्द्र देव करि कह्या जो दयामयी धर्म सहित शास्त्रन का कथन तिनका रहस्य पाय अनेक धर्म धारी जीवन ने अपना कल्याण किया। सो ऐसे शास्त्रन का अभ्यास करके तथा सुनि के भी जाका हृदय वैराग्यकू नहीं प्राप्त भया। तो ऐसे शास्त्र के पढ़ने से तथा सुनिवे ते कहा कार्य सिद्ध भया? और जिन जीवनने दयामयी रस कर भरे ऐसे शास्त्र तिनका अभ्यास करके भी पाप-कार्यन ते भय साय धर्म रूप
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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