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________________ होय है । तातें नरकादि दुःख, धर्म-घात का फल जानना । तातै विवेकी हैं तिनकू धर्म सेवन के काल में धर्म-घाति करि, पाप-विकल्प में काल गमावना, योग्य नाहीं। तातें धर्मात्मा गृहस्थ हैं सो तिन्हें प्रथम प्रभात धर्म-काल वि.मले प्रकार निर्मल भावना सहित धर्म-कार्य करि, पुण्य का संचय करना योग्य है। पीछे अपने पूर्व-पुण्य का फल इन्द्रियजनित सुख, ताहि भौग्या करौ। ऐसे सदैव धर्म-काल मैं धर्म का सेवन करना और अन्य-काल मैं कर्म-कार्य करना। ऐसे करि पुण्य का संग्रह करें। ताके फल, फेरि भी पर-भव मैं देवादिक के इन्द्रियजनित सुख-भोग पावें है और जै जीव-धर्म को भलि करि, धर्म-काल विर्षे इन्द्रियजनित भोगन में रक्त होय, सुख माने, सो मानौ। परन्तु पूर्वले पुण्य का फल भोगि चुकैगा, तो पीछे धर्म-फल बिना, नरकादि गति होयगी, ताके दुःख • भोगवेगा। जैसे कोई एक भला व्यापारी, अनेक व्यापार करि, अपनी बुद्धि के बल करि, बहुत धन कमाया। सो इसरे दिन सुख तैं भोगवै है । अरु जब दुकान पै कमाई का समय आया, तब अनेक सुख भोगे थे तिनकं तजि. दुकान चै जाय अनेक व्यापार-कला करि धन कमावै। तो दूसरे दिन, सुख से भोग्या करै। ऐसे भीग के काल में भोग-सुख करैः परन्तु अपनी कमाई का समय भावै तब अनेक काम छोडि, पाय कमावे। कमाई का काल नहीं चक। सो तो सदेव कमावे-खावे, सुखी रहै और जे जीव एक बार व्यापार करि धन कमाया। सो धन लेय, नाना प्रकार सुख करता भया। अरु फेरि कमाई का काल आया, तब भी नाच-नृत्य, खान-पान, भोग ही में रत मया धन उड़ाया करचा, कमाई कू नहीं गया। कमाई का काल वृथा गमा दिया और आगे कमाया था, सो धन खाय लिया। सो जीव कमाई बिना रङ्ग होय, भीख मांगेगा, दुःखी होयगा, रौसा जानना तथा कोऊ एक पुरुष के एक बाग है। तामें नाना प्रकार के मेवा होय हैं। अरु महासुन्दर सघन-छाया महाशोभायमान तामैं पांच सौ रुपया साल का मैवा होय, ताहि बैंचि, तामैं कुटुम्ब कौ पाले। ऐसे साल की साल, पांच सौ रुपया का मेवा बैंचि, सुखी रहै। अनेक मेवा पाप भोगवै। बाग को भली रक्षा किया करें। ऐसे बहुत दिन बीत गये। बाग की रक्षा करे दुष्ट पशन ते बचावै। वन कौँ निर्विघ्न राखें। ताके | फलन करि अपने कुटुम्ब का पालन करें। आप आनन्द सू रह्या करें। ऐसे बाग लें, पाकौं देखतें सुन होय । सो एक बार काष्ठ काटनहारे पाये, इस बाग बारे को कही। तेरा बाग मौल दे। तब याने पांच सौ रुपया मैं २४.
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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