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________________ । नरकादि खोटी गति नहीं होय है। नरक दाता और ही कार्य हैं। सो बतावै हैंगाया- धम्म तरु फल अख गृहयो, सो फल दुगय देय णह कवक । धम्म कालय अत्र कर, कुमय फल देय सोय कीयाय १९३ । अर्थ-धम्म तरु फल कहिये, धर्म वृक्ष का फल। अख सुहयो कहिये, इन्द्रियन के सुख सो फल दुगथ देय। राह कबरू बाहिरी, सो फल दर्गतिनाब नहीं देश । म कालय अध करऊ कहिये, धर्म काल में पाप करे तो। कुगय फल देय सोय कोयाय कहिये, सो क्रिया कुगति का फल देय है। भावार्थ-यहां कोई रोसा जानैं कि जो इन्द्रियन का सुख है सो धर्म-धात करके जीवनको दुर्गति करै है । सो हे भाई! तू' चित्त देय सूनि । इन्द्रियन के सुख हैं सो तौ पुण्य का फल है । सो पुण्य फलत देव, इन्द्र, चक्री, काम, देवादिक का सुख है सो हजारों स्त्रीन के संग नाना प्रकार पंचेन्द्रिय मनवांच्छित सुख-भोग भोगते हैं। अनेक रथ, हाथी, घोटक, पैदल आदि अधिक सेन्या सहित, निरखेद मये, अपनी शुभ परिणति का फल ताहि भोगवं हैं। सो ये पुण्य का फल है। सो पुण्य का फल इन्द्रिय सुख है। सोही पुण्य का घात कैसे करें ? जे फल हैं सो अपने वृत्त का नाश नहीं करें। तातें इन्द्रिय सुख धर्म घात करते नाहों। इन्द्रिय सुखन तैं दुर्गति होती नाहीं; ऐसा जानना। यहां प्रश्न—जो जगहजगह शास्त्रन में ऐसा सुनिये है कि जो फलाना राजादि पुरुष, इन्द्रिय-सुख में मगन होय, नरकादिक गये। तहां जे महान-बुद्धि चक्रधर राजा थे, सो जगत् भोगन तै उदास होय, इन्द्रिय-जनित सूख दुर्गतिदाई जानि, सर्व राज्य-भोग सम्पदा तजि, दीक्षा धरते भये ।। तातै इन्द्रिय-जनित सुख पायकारी नहीं होता, तौ काहे कूतजते ? और यहाँ ऐसा कह्या जो इन्द्रिय-सुख धर्म का घात नहीं करै है। इन्द्रिय-सुख ते नरकादि खोटो गति भी नहीं । होय है। सो ये बात कैसे बने ? ताका समाधान---जो हे भव्यात्मा! तेरा प्रश्न प्रमाण है। परन्तु अब चित्त देय सुनि । जो वस्तु जातै उपज है सो ताका नाश नहीं करै । सो देखि, इन्द्रादिक-पद, चक्री-पद है, सो वांच्छित इन्द्रिय-भोग के सुख का सागर है। जो इन्द्रिय-जनित सुख ते दुर्गति होती, ती इन्द्रन को होय तथा देवन कू तथा भोग-भूमियान कूपर-भव दुर्गति होय । तातै ऐसा जानना। जो खोटी गति होय है सो इन्द्रिय सुख का फल नाहीं। जातें इस जीव कू खोटो गति होय है, सो तोकौं बताइये है। जे जीव धर्म-काल विर्षे, धर्म कूलि करि, विषय-कषाय में रायमान होय के, धर्म का घात करें। तिस धर्म-घात के पापते नरकादि खोटो गति ३३१
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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