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________________ श्री सु < fir २९५ है और आत्मा के कल्याण का स्थान जो मोक्ष सो ये मोक्ष भावना रहित हैं। केतेक संसार में धर्म क्रिया करनेहारे मनुष्य ऐसे भी जानना और कोई लोभ अभिलाषी धर्म का साधन लोभकूं करें हैं। पंचेन्द्रिय सुख की सामग्री धर्म सेवन के जोगतें मिलती जानि धर्म सेवन करें हैं सो लोभी वारोक वस्त्र तथा दुशाला रेशमी रोमो आदि अनेक भारी वस्त्र के स्पर्श की है इच्छा जिसकैं सो स्पर्शन इन्द्रिय पोषवेकूं धर्म का सेवन करि भोले जीवनकूं अपना धर्मोपना बताय उनका धन खरचाथ बड़े भारी मील के वस्त्र अपने तन पै राखे । दश दिन पहिर करि पीछे अपना जश करावने कूं याचकन कूं दे डारै । अपना यश अपने आगे कान तैं सुनि राजी होय । ऐसा भोरा प्राणी जो पराया धन खरचाय अपना जरा गावैं। अपने चतुराई के जोगते लोकन का भारी धन खरचाय भारी वस्त्र पहिर लेना सो स्पर्शन इन्द्रिय पोषने के निमित्त धर्म का साधन करें है और केतेक रसना इन्द्रिय पोषनेक धर्म सेवन करें जानें हम भला तप करेंगे तो भक्तजन मला भोजन । सो और अपना धर्मात्मापना बताय कौं धर्म का अंग जप, तप आदिक प्रगट करि नाना प्रकार षट् रस भोजन के लोभ को धर्म का सेवन करें हैं। सो केतेक जीव ऐसे रसना इन्द्रिय पोषने कूं धर्म सेवनेहारे हैं और केतेक नाना सुगन्ध की इच्छा के लोभी केशन में तेल, फुलेल, इतरादि सुगन्ध मंगाय लगावना । तन पै व वस्त्र में लगाय खुशी रहना । सो सुगन्ध ( घाण ) इन्द्रिय के पोषने कौं धर्म सेवन करें हैं । केई प्राणी ऐसे ही हैं और चक्षु इन्द्रिथ के लोभी चक्षु के विषय पोषने कौं नृत्य करें हैं तथा औरन पै नृत्य कराय देखने के इच्छुक भले रूपवान् पुरुष स्त्रोन का रूप देखवै कौं धर्म का सेवन करें हैं तथा अन्य मोले जीवनकूं ठगि तिनका धन लगाय अनेक चित्रामादि रचना कोच के मन्दिर करवाय तिनमें रह केदेखि देखि हर्ष - सहित तिष्ठवे की है अभिलाषा जिनको सो केई ऐसे चक्षु इन्द्रिय के भोग कूं धर्म का सेवन करें हैं और केईक श्रोत्र इन्द्रिय के भोगी; अनेक राग आप करि जानें है तथा और के मुखतें अनेक रागवादि सुनने की है इच्छा जिनके इत्यादिक कान इन्द्रिय पोषने धर्म का सेवन करें हैं। ऐसे स्पर्शन, रसना, प्राण, चक्षु, श्रोत्र- इन पांच इन्द्रिय पोषनेकौं धर्म सेवन करें हैं और केतेक धन इकट्ठा करवेकूं धन के लोभी धर्म-सेवन करें हैं; बने जैसे धन पैदा करना । सो आप तो अनेक उपवास करें। तपस्वी का २१५ 可 लो
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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