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________________ २४४ aai घाती का स्वरुप जान्या जाय है। सो कहिय है--जो पराया किया उपकारको भले सो कृतनी है। सो कृतघ्नी के भेद तीन है-घर, पर और धर्म-इन तीन का उपकार अन्य जीव पै होय है। सो जैसे—माता-पिता ने बालक अवस्था में महा यतन किये। शीतकाल में तथा उष्णकाल में अनेक सहाय करि मोह के वशीभत होय अनेक यतन करि पाल रक्षा करी। तरुण किया सो बड़ा मया तब माता-पिता का उपकार भूलि उनत द्वेष-भाव करि जुदा होना, अविनय करना, कटु वचन बोलना, दुख देना, माता-पिता ते ईर्षा करनी, सो र घर कृतघ्री कहिए तथा और अन्य घर में बड़े थे। तिनने भी बालपने में अनेक तरह रक्षा करी। ऐसा विचार करें जो ए बड़ा होय तब हमारी आज्ञा मानेगा, हमारी सेवा करेगा, हमको बड़ा मानेगा। रोसो जाशा करि कुटुम्ब के लोगन नै प्रति पालना करी थी। सो बड़ा भए उल्टा कुटुम्बकौं दुखी करना, सो घर कृतघ्री है। ऐसा जानना और कोई जो परजन बड़े मनुष्य वस्ती के और जाति के तिननें कोई भूखा देखि अन्न दिया, नागा देखि वस्त्र दिया, बैराजगार देखि रुकगार लगाय दिया, निर्धन देखि धन दिया, स्थान रहित देखि रहवेको मन्दिर स्थान दिया इत्यादिक दुखन मैं सहाय किया और रोगीकों पीड़ावान देखि अनेक ओषधि देय अच्छा किया। ऐसे अनेक दुःख मैं सहाय करि सुखी किया। अरु पोछे कर्म योग तैं आप शक्तिमान भया तब उन उपकारी का उपकार भूलि द्वेष करें। सो पर-कृतम्रो कहिए और जादू महासज्ञान में प्रवर्तता देखि पाप करता देखि पर-भव नरक पड़ता देखि कोई धर्मात्मा दया-भाव करि अज्ञानता छुड़ाय ज्ञान करावता भया और पाप-मार्ग से बचाय धर्म का । पंथ बतावता भया नरकादि खोटी गति ते बचाय शुभगति बतावता भया, लोकनिन्ध-अनाचार छुड़ाय सुआचार बतावता मया। जानी यह जीव सुखी होय तो भला है, ताके निमित्त शुभ पंथ लगाया। अरु पीछे आपके कछु सामान्य भाव-भान भया, शास्त्र रहस्य पाया । तब उसके उपकारको भूलि. द्वेष-भाव करना, सो धर्म कृती है। रोसे तीन भेद कृतघ्नी के कहे हैं। सो महापाप के स्थान हैं। तातं हेय हैं। मागे विश्वासघाती का स्वरूप कहिये है। तहां परकौं विश्वास उपजावना! कहना जो मैं तेरी सहाय करूंगा। धन द्योगा। तेरा दुख-दारिद्रहरूँगा। तू कळू उपाय मति करें। ऐसे अनेक मिष्ट वचन बोलि, विश्वास उपजाय पीले काम पड़े नट जाय । दगा दे जाय। कह मोतें तौ अवार नहीं होय। ऐसे कहि ताके कार्य का घात करे। ऐसी कहै सो विश्वासघाती कहिए। २४४
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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