SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दु जैसे-यहाँ एक कल्पना करि लौकिक दृष्टान्त बनाय, विश्वासघात का लक्षण कहिए है। जैसे-एक किसान ने अषाढ़ महीना मैं नाना प्रकार खेद खाय, हल चलाय के खेत शुद्ध कर राखे थे। सो जब मला मेव वर्षे पीछे, सर्व खेती बार घरन तैं बीज को मोटि (गठरी) बांधि वनकौं चाले। तब एक किसानकों देखि एक दुष्ट-अनुष्य की खोपड़ी राह में पड़ी थी सो हँसती भई। तब किसान • आश्चर्य भया । जो र निर्जीव-खोपड़ी हाड़ को क्यों हँसी? तब इस किसान कही-हे सोपड़ी! तूं क्यों हँस है ? तब खोपड़ी ने कड़ी-जोकों देखि हँसौ हौं। मैं देवता हो सो तेरे पै राजी भई, सो अब सेमैं बीज बोवे मति जाय । मैं तेरे खेत में बिना बोया ही बहुत अन्न करूंगी। तब या किसाननै जानी यह देवो है। सोया मौ राजी भई। तब किसान याके वचन का विश्वास कनिगरिमा और अन्य किसान सर में बोन दोर घर आये। पीछे दस बीस दिन गए। अपने-अपने खेत देखनेकौं सब किसान चाले। अत्र उगा देखि, राजी भए । तब यान भी विवारी जो मेरे खेत में भी अन्न मया होय। सो ए भी देखवेकी चल्या। सो राह मैं खोपड़ी फिर हँसी। तब किसान ने कही, क्यों हँस है ? तब कही, सोकौ देखि हँस हूँ। तू कहां जाय है ? तब किसान ने कही। औरन के खेत हरे-भरे शोमा देय हैं। सो मैं अपने खेत की शोभा देखनेकौं जाऊँ हो। तब खोपड़ी की है। रे भाई! मैं तेरे पे तुटी हौं। औरन ते बहुत अन्न तेरे खेत मैं करूँगो, सन्तोष राखि। तब किसान, खोपड़ी के वचन का विश्वास करि घरि गया। जब महीना एक-डेढ़ भया, तब सर्व किसान अपने-अपने क्षेतनतै फल ले-ले अपने-अपने पुत्रन के निमित्त घर जाये। तब किसान के बालक औरत पे अनेक फल देखि, रुदन करते भए। अरु फल मांगते भये। तब किसान में विचारी, जो औरन के फल आये, सो मेरे खेत में भी फल आये हों हैं। ऐसो जानि वन खेत के फल लेने को चाला। तब राह मैं खोपड़ी हँसी। तब किसान ने कही,तु कहा हँस है ? औरन के खेतन में फल भए और सर्व के बालक खाएँ हैं और मेरे बालक फल बिना रुदन करे हैं। तब किसान के वचन सुन कर खोपड़ी हैसकें कहती मई। भो सुबुद्धि! धीरज राति । सोचि मति करें। मेरे वचन का कतौ विश्वास राखि तेरे खेत में गते फल-जन्न होयगा। जो तेरे बुतो गाड़ानित ढोवा भी नहीं जायगा। परन्तु विश्वास राखि, सोचिमति करै । ऐसे कही, तब फिर पीछा घर आया। जानो देव के वचन हैं, सो अन्यथा नहीं हो हैं । येसा विश्वास धरि भया, क्षेत २४५
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy