SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 44 सु I 和 २३५ तथा जिन मन्दिर कराय तिनकी प्रतिष्ठा का उत्सव करि हर्ष मानना तथा और भव्य ने किया होय तो ताकी उत्तम भावना देखि हर्ष अनुमोदना करना उपादेय है और जहां निरन्तर करि मलिका दान आएकै तथा परकें या जानि अनुमोदना करना उपादेय है तथा कोई भव्यात्माकूं जिनवाणी का अभ्यास करता देखि तथा सुनि हर्ष करना उपादेय है तथा कोई धर्मात्मा कं दीन जीवनकूं दया भाव सहित दान देता देखि हर्ष करना. उपादेय है तथा काहू भव्यात्मा पुरुष की करो जिन मन्दिर की अनेक शोभा-रचना देखि, अनुमोदना करना उपादेय है तथा जिन मन्दिर के उपकरण छत्र, चमर, सिंहासन, मामण्डल, घण्टा, चन्दोवा तथा पूजा के उपकरण थाल, रकेबी, झारी, प्यालादि देखि हर्ष करना उपादेय है तथा उत्कृष्ट अक्षर पत्र. बन्धना पूठा सहित शास्त्र देखि तथा काहू धर्मी नै शास्त्र लिया तथा लिखाया देखि अनुमोदना करनी उपादेय है तथा कोई भव्य का मिध्यात्व नाश सम्यक्ष-भाव भया जानि तथा कोई जीव-धर्म सन्मुख भया देखि इनकी हर्ष अनुमोदना करना उपादेय है और पश्च परमेष्ठी को भक्ति सहित जीवकों देखि तथा तीर्थङ्कर का समवशरण देखि तथा रचना सुनि तथा मुनि, आर्थिक श्रावक श्राविका व्यारि प्रकार संघक देखि हर्ष भाव करना और अपने से गुणाधिक धर्मात्मा जीवक देखि अनुमोदना करना, उपादेय है तथा किसी धर्मात्मा जीवकूं तीर्थ-यात्राकूं उत्सव सहित जाता देखि अनुमोदना करनी तथा कोई धर्मात्मा जीवनको साता देखि तथा धर्मो जीवन के समूह में साता सुनि अनुमोदना करनी उपादेय है। ऐसे कहे जो अनेक पुण्य उपजने के पूज्य स्थान तिन सर्व मैं सम्यग्दृष्टि जीवनको हर्ष अनुमोदना करना उपादेय है । इति श्री सुष्टि तरङ्गिणी नाम ग्रन्थ के मध्य में अनुमोदना भेद की परीक्षा विशेष हेय उपादेय का कथन करनेवाला सतरहवीं पर्व सम्पूर्ण हुआ ॥ १७ ॥ आगे मोक्ष विषै ज्ञेय हेय उपादेय कथन कहिए है गाथा - मोडे गे हे पाये, आवागमणीय मोक्ख हे भणियो । कम्म विमुक्को मोक्लो, पादेयो सुह दिट्टीए ॥ ४२ ॥ अर्थ- मोक्ष विषै ज्ञेय-हैथ उपादेय है। सो जो आवागमन सहित मोक्ष है सो तौ हेय है और कर्म रहित मोक्ष है सो सम्यग्दृष्टि जीवन करि उपादेय है। भावार्थ- समुच्चय मोक्ष का जानना सो तौ ज्ञेय है । ताही ज्ञेय २३५ DES त रं 位 पी
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy