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________________ गोपादारिक शरीर व नामापात है। शरीर रहित जकल हैं। इन दोय गुण सहित जी सिद्ध है सो सर्व लोक के । मस्तक, मुकुट समान विराज हैं। ऐसे लोकालोक का विशेष विचार चिन्तन-ध्यान करना, सो संस्थान-विचयधर्म्यध्यान है। ४ । रोसे कहे जे च्यारि प्रकार धर्म्यध्यान, सौ धर्मात्मा जीवन के सहज ही होय हैं। यह विचार का फल स्वर्गादि उत्तम गति है, परम्पराय मोक्ष होय है। ताते ए विचार धर्मात्मा जीवन करि, उपादेय करने योग्य हैं। इति धर्म्य-ध्यान। आगे शुक्ल-ध्यान-जहां आत्म स्वभाव का अरु पुदगल स्वभाव का भिन्न-भित्र विचार करना.सो पृथक्त्ववितर्क विचार शुक्ल-ध्यान है।। मनकौं एकाग्र-भाव करि एक ही अर्थ के विचार करतें केवलज्ञान होय, सो एकत्ववितर्क विचार शुक्ल-ध्यान है। २ । जहाँ मन-वचन-काय योग के अंश सूक्ष्म करने रूप आत्म परिणति, सो सक्ष्म क्रिया प्रतिपाति नाम शुक्ल-ध्यान है। यहां मन प्राण के अभाव होते विचार का भी कथन नाहीं। एक आत्म-भाव ही शुद्ध रूप है र तीसरा शुक्ल-ध्यान है। ३। जहाँ पुटुगलीक तन क्रिया का सम्बन्ध छोडि निर्बन्ध-भाव होना, सो व्युपरीत क्रिया निवृत्ति शुक्ल-ध्यान है। ४ । इत्यादिक शुद्ध विचार सो ! उपादेय हैं । ऐसे विचार निकट संसारो जीवन होय हैं तथा कर्म रहित जीवन के होय हैं। संसारी, धर्म रहित, भोरे, परभव में विपरीत दुख-फल के उपजावनहारे जीवन कूरोसा विचार महादुर्लम है। दीर्घ संसारी, भव भ्रमणहारे, अशुभ भावना के धारी जीवनको तौ, शुभ विचार होना महाकठिन है। ऐसे शुभाशुभ विचार मैं सम्यग्दृष्टि जीवन की हेय-उपादेय करना महाउत्तम है । सो शुद्ध दृष्टि के होते, हेय-उपादेय भाव सहज ही प्रगट होय हैं। इति विचार विष ज्ञेय-हेय-उपादेय भावाधिकार समाप्त भया। आगे आचार जो क्रिया, तामैं शेय-हेय-उपादेय कहिए है। तहो समुच्चय शुभाशुभ क्रिया के विचार, सो तो झेय हैं। अरु ताही त्रेय के दोय भैद हैं। सो एक तो शुभाचार है. सो तौ उपादेय है। एक अशुभाचार है, सो हेय है सो जहाँ दया सहित चलना, भूमि विषं जीव देखि, बचाय चलना, सो शुभाचार है। बोलना सो सर्व क सरकारी वचन, दया सहित, हित-मित, सत्य, पुण्यकारी वचन बोलना, सोशम किया है और मान करना, गाले जल करना, सरोवर नदी वापीन मैं प्रवेश करि नहीं सपरना आपके शरीर को भाताप ते बहुत जल १५५ जीवन का घात होय है तात यह कार्य तजना भला है और कदाचित् ऐसा ही निमित्त मिले, तो जलाशय मैं ते जल
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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