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________________ तथा अपनी चतुराई करि औरन कौ परस्पर युद्ध कराय के हर्ष मानं । कोई अन्य जीव के, हाथ-काननाकादिक अङ्ग-उपाङ्ग छेदकै आनन्द मानें तथा और कोई, काहू के अङ्ग-उपाङ्ग छेदता होय ताकों देख । आप हर्ष मानें तथा और का घर-धन लुटता देख आप आनन्द मानें। इत्यादिक जीवन कं दुखो देखि आप | हर्ष पाच, सो हिंसानन्द-रौद्र-विचार है ।। जहां अपनी चतुराई करि असत्य बोलि हर्ष मानें तथा औरनको | मठ बोलते देखि हर्ष मानें, जाकों झूठ प्रिय होय इत्यादिक मूठ मैं आनन्द माने, सो मृषानन्द-रौद्र-ध्यान है। २। आप चोरी कार आनन्द माने और को आदेश देय चोरी कराय आनन्द मानें, कोई के चोरी भई सनि आनन्द माने, चोर ताकौं अति प्यारे लागें। इत्यादिक चोरी के कार्य कारणनकौं देखि आनन्द माने, सो चौर्यानन्द-रौद्र-ध्यान-विचार है ।३। जहाँ बहुत परिग्रह इकट्ठ करि आनन्द माने, और आय गैया, मैं सि, , बैल, घोड़ा, हाथो, गाड़ा. गाड़ी, रथ, सैनादिक परिग्रह तथा महल, बाग, कूप, बावड़ी, तलाब इनकों आदि बह आरम्म करि आनन्द माने तथा और कौ ऐसे आरम्भ करावते देखि आनन्द मान इत्यादिक बहुत परिग्रह मैं बहु प्रारम्भन मैं आनन्द का मानना, सो परिग्रहानन्द-रौद्र-ध्यान है ।8। ऐसे च्यारि भेद रौद्र-विचार हैं । सो नरक गति के दाता जानना । ऐसे रौद्र-ध्यान च्यारि भेद रुप है। आर्त-विचार सम्यग्दृष्टिकै सहज ही हेय हैं। ए आर्त-विचार, रौद्र-विचार र दोऊ ही अशुभ फल के दाता हेय हैं। ऐसी जानि इन कुविचारन कं तजे हेय करें है। इति कुविचार । आगे सुविचार कहिये है। तहां धर्मात्मा जीवनकै निरन्तर सहज ही ऐसा विचार रहै है। जीवाजीव पदार्थ केई प्रगट हैं, केई अप्रगट हैं, केई भार्स हैं, केई ज्ञान की मन्दता करि नाही भासें हैं। परन्तु जैसे-जिनदेव ने केवलज्ञान करि कहा है, सो प्रमाण है। मेरी मन्द बद्धि करि मोकं नाहों भासं, तौ मति भासौ । परन्तु केवली के कहे मैं मेरे संशय नाहीं। जिनदेव का काया प्रमाण है। ऐसी हद प्रतीत रूप विचार करना, सो आशा-विचय-धर्म्य-ध्यान है। ३। और जहां निरन्तर ऐसा विचार रहै जो मेरा धर्म निर्दोष कैसे रहै ? मेरे आयु पर्यन्त-धर्म का साधन कैसे रहै ? और मेरे तत्त्वज्ञान कैसे बढ़े? और धधध्यान मैं चित्त को एकता कैसे होय? मेरे क्रोध, मान, माया, लोम कयायन की घटवारी कैसे होय ? समता-भाव कैसे बढ़े। मैं शान्तिरस अमृत का पान कब करूँगा? मेरे संयम
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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