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________________ १८२ निमित्त पाय, परिसति खेद रूप होय विचार करना, सो अनिष्ट संयोगज आर्त-विचार है । और तीसरा आर्त| विचार ताको कहिय। जो अपने तन मैं पाप-कर्म उदय होते भरा जो नाना रोगन की उत्पत्ति. तिनकै तीव्र दक्ष देख ऐसी अरति कर लो रोप तोता है, कौट जय तें जाय तथा का जायगा? ताके मेटवेक अनेक सोच, चिन्ता, मन्त्र, जन्त्र, तन्त्र, औषधादि करना तथा अन्यक तोव रोग देख के जाप डस्ना, जो ऐसा रोग मोको नहीं होय तो भला है। ऐसे रोग पीड़ा का निमित्त पाय बारम्बार विचार करता. सो पीड़ा चिन्तन आर्त-ध्यान है।३। चौथा विचार जो कोई धर्म-क्रम का कार्य करते पहले ऐसा विचार करें जो मोकू याका ऐसा फल होहु । याका नाम निदान बन्धा आर्त-विचार है।४। आगे र आर्त प्रगट होनेक चिह्न कहिर है। प्रथम तौ अन्तरङ्ग चिह जो अन्तरङ्ग में परिग्रह की तीव्र वांछा होय, जो मैं बहुत धन कैसे पाऊँ।२। कुशील की इच्छा को मौकी स्त्री का निमित्त कब मिलेगा। ऐसी चिन्ता होय । २ । माया कुटिलताई रूप परिणति, अपने चित्त के छल कुटिलता औरन को न जनावना, सो आर्त का लक्षण है। ३। अन्तरज-कौ दाह ऐसी रहै जो कोई कौं साता नहीं चाह और कौं सुखी देखि आप वाके दुखी करने का उपाय विचारना। 8। अति लोभ परिगति, जो राज्य व लक्ष रुपये होते तृप्ति नहीं होय ।। अपने भावन का कृतघ्रीपना, जो और अपने ऊपर उपकार करे, काहू का उपकार होय तौ ताकं भलिकै उल्टा तात द्वेष भाव करना ।६. चित्त महाचञ्चल करना । पंचेन्द्रिय विषयन की बारम्बार चाहना करना।८। सदैव शोक रूप परिणति राखना। । । श नव चिह्न तौ अन्तरङ्ग आर्त होते प्रगटें हैं । बाह्य चिह मार्त के तहां दिन-दिन प्रति खान-पान अल्प होता जाय, तन क्षोण होय सो तन-सोखन है। शरीर का वर्णमारे चिन्ता के फिर जाय, सो विवर्ण-चिह्न है। २। कपोल हाथ धरि बैठना, सो पार्त-चिह्न है।३। तीव्र चिन्ता त बार-बार नेत्रन ते अश्रुपात का चलना।।। ए च्यारि चिह्न बाह्य प्रगट होय हैं। ऐसे चिह्न संहनन सहित बार्त-ध्यान के जानना । सो रौसा विचार तिर्यञ्च गति का दाता जानना। ऐसा आर्त-भाव सम्यक भये सहज ही हेय होय है। सम्यग्दृष्टि के त्याग भाव हो रहे है। इति आर्त-विचार। आगे रौद्र-विचार कहिय है। १५२ रौद्र-विचार ताकौं कहिए। जहां पर जीवनको आप मारि हर्ष मानें तथा और को बादेश देय जीव घात कराय, हर्ष मानें तथा और कोई काहू जीवकू मारता आप देखै तब हर्ष मानें तथा काहू कू युद्ध करते देखि हर्ष माने
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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