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________________ कुशास्त्र है तथा जिनको सुनि, भोले जीव बान बढ़ावे की इच्छा तजे, सो ये परारा ज्ञान हरनहार कु-शास्त्र कहिये पराया धन पापमैं लागै रोसा उपदेशदाता शास्त्र सो कु-शास्त्र है। भोले जीवनकौं बहकाय पाप पंथ लगाय नरक मन्दिर का हिंसा द्वार तामैं घालि नरक मन्दिर पहुँचावै, सो कु-धर्म है और जा विर्षे अनेक मायाचार सहित पाखण्डिन करि भोले जीवनके ठगने का कथन होय, सो कु-धर्म है। जामें अनेक विषय कषाय पोषने का कथन होय, सो कु-धर्म है । जिनका उपदेश सुनै स्त्रीन के भोग की इच्छा होय, धन बढ़ावे की इच्छा होय, राज की इच्छा होय, तिनको सुनि युद्ध की इच्छा होय, सो कु-शास्त्र हैं और अपनी महन्तता प्रगट करवे के निमित्त कोई व्यन्तरादिक देवन का सहाय पाय बनाए होय, सो कु-शास्त्र हैं और जहां बनेक अभक्ष्य वस्तु का भोजन काह्या होय तथा जामैं आचार जो मली क्रिया ताका निषेध करि हर कछु का भोजन बताथा होय रोसा अनाचार सहित होय, सो कु-शास्त्र है। जहां मद्य-मांस-भक्षण मैं पाप नहीं कह्या होय, सो कु-शास्त्र है और जिनमें तीर, गोलो, बन्दूक, पिंजरा, फन्दा, फांसी, धनुष, वाण, तोप की नालि, रामचंगी. दारू, रंजक, छुरी, कटारी, बरछी, गुप्ती इत्यादि हिंसा के कारण रा सर्व शस्त्र तिनके बनायवे की कलाचतुराई कही होय, सो कु-शास्त्र हैं। नाना प्रकार चित्राम-कला, शिल्प-कला इत्यादिक चतुराई जहां कही होय, सो कु-शास्त्र हैं और जहां कु-दान जो स्त्री का दान, रति-दान, दासी-दान, दास-दान-ए विषयी जीवन के प्रतापे, पर-स्त्रीन के भौगन की इच्छावाले पण्डित, तिनके कहे है। जिनमैं ऐसा कथन चले, सो का-शास्त्र हैं। जिनमैं कु-तप हिंसाकारी, कु-तीर्थन की महन्तता का कथन हो, सो कु-शास्त्र हैं । जिनमैं विषय पोषने के कारण राग-रङ्ग, नृत्य-गान बजावने की कला प्ररुपी होय, सो कु-शास्त्र हैं। जहाँ मन्त्र, जन्त्र, | तन्त्र, ठान, टोना इत्यादिक पर के वशीकरणादि का कथन होय, सो कु-शास्त्र हैं। जिनके सुनैं हिंसा, मोह, क्रोध, मान, लोभ बढै, सो कु-शास्त्र हैं। जिनके सुनें काम की उत्पत्ति होय, जिनमैं चार कलाका व्याख्यान होय, कन्दमल सहित भोजन, रताल, पिण्डाल, जमीकन्द, गूलर, बड़फल, पीपरफल इत्यादिकन का भक्षण 'कर पाप नहीं कह्या होय, सो कु-शास्त्र हैं। जिनमैं भत-प्रेतादि, व्यन्तर-देव तथा अपनी मति कल्पना करि | माने येसे शीतलादिक देवन का चमत्कार, जिनकी पूजा करवे की विधि, तिनके प्रसन्न होने की विधि
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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