SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ |११८ भगवान का है। सो उस शुद्ध भगवानको जान्या चाहिये। सो कैसे जानिए ? तौ विवेकी ऐसा विचार जो वस्तु जानिये है, सो गुणत जानिरा है। तात प्रथम ही भगवान के गुण जानें, तो शुद्ध भगवान जान्या जाय । तातें भगवान के गुण कहिय है। सो एक तौ जिन भगवान वीतरागो होय, वीतराग भाव बिना सरागी जीवन पे यथावत् उपदेश होता नाही. अपना भगत होय ताकी प्रशंसा करै रक्षा करें। अपना भक्त नहीं होय तौ ताकी निन्दा करे, ताका बुरा चाहै। तो ऐसे देव का वचन प्रमाण नाहीं। तातें यथावद उपदेश, वीतरागी बिना होता नाहीं। तातें देव वीतरागी चाहिये और सर्वज्ञ चाहिए। सर्वज्ञ बिना लोकालोक को नहीं जानें। जीवन के अन्तरंग घट-घट को नहीं जाने, रोसे तुच्छ ज्ञानीन का वचन प्रमाण नाहों। तातें भगवान सर्वज्ञ चाहिये और वीतराग सर्वज्ञता है। किन्तु तारक नाहीं, तो किस काम का भगवान् ? काहू का तो भला करता नाहीं। तात् भगवान् तारक चाहिये। जाका नाम लिए, ध्यान किए, पूजे, भगतन का भला होय इहाँ प्रश्न—जो भगवान वीतराग है तामैं तारकपना कैसे संभवै? तारकपना तौ सरागी को होय है। अरू वोतरागी कं भगत के तारने की इच्छा मरा, वीतराग भाव कैसे रहै? अरु बिना इच्छा भगत का भला कैसे होय, सो कहो 1 ताका समाधान। जैसे—सूर्य के रौसी इच्छा नहीं, जो मैं अपना उदय करौं, जिससे कमल प्रफुल्लित होय। परन्तु सूर्य का उदय होते सहज भाव हो कमल प्रफुल्लित होय हैं, सूर्य में कोई ऐसा गुण सहज हो पाईए। तैसे ही भगवान के तो ऐसी इच्छा नाही, जो भगतन का भला करौं । परन्तु भगवान् मैं कोई तारण गुण सहज ही ऐसा पाईए है। जो ताकरि भगत का भला होय ही होय और जो सूर्य की तरफ़ कड़ी नजरि ( दृष्टि) करि देखे, तौ ताके नेनन आगे अन्धकार-सा फैलि जाय, नेत्रन की ज्योति मन्द होय, सो सूर्यके तौ गैसी इच्छा नाहों जो मेरा तरफ कर देख्या, तातें अन्धा करौं । परन्तु सूर्य के तेज मैं कोई सहज ही ऐसा अतिशय है। सो सूर्य की तरफ सफत दृष्टि करि देखे, तौ नेत्र की ज्योति मन्द होय। तैसे ही भगवान को तौ सेलो इच्छा नाही जो इस निन्दक मन बुरा करों। परन्तु कोई ऐसा ही अतिशय है। जो भगवान की निन्दा किरा नरकादि दुःख सहज ही होय । तातें भगवान् मैं वीतरागता. सर्वज्ञता, तारकपना—रा तीन गुण तो मुख्य हैं। अरु और अनन्त गुण हैं, तिनमैं केतक बाह्य, अभ्यन्तर गुण अतिशय कहिए हैं। तिनके जानें भगवान् को पहचानिए। सो हो कहिर है
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy