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________________ 命!、际 मु ११७ ऊँच लेय, पीछे ताक मौत हो होय हैं। ताकों अतिशय सहित पुश्य कहिए और कबहूँ शुभभावतं पुण्य का बन्ध होय । कबहूं अशुभ भावनतैं पाप-बन्ध होय । पुराय-बन्ध होता रहि जाय। ता फल कबहूं देव कबहूं पशु होय 1 ऐसे पुयक अतिशय रहित कहिए। ए पुण्ध, संसार का हो कारण है। ऐसा जानना और सुनि भो भव्य ! सम्यग्दृष्टि तौ पुण्य-बन्ध की इच्छा नाहीं । परन्तु सम्यक भए पीछे दोष-तीन भव लेने होंय, तौ तेते काल संसार मैं रहे। पुण्य फल सम्यग्दृष्टिन के बन्ध भए पोछे टूटता नाहीं । सो संसार मैं रहें जेते देव, इन्द्र, चक्री, महान राजा, सुखी होय पीछे परम्पराय मोक्ष ही होय । तातें सम्यग्दृष्टिकै ऐसा अतिशय सहित पुण्य-बन्ध ही होय है। ऐसा यह सहज ही भाव जानना। ऐसे तेरा उत्तर जानहु ऐसा जोव अजीव तत्त्वन का स्वरूप जिनदेवनें दिव्य ध्वनि करि कह्या । तैसे ही गणधर देव ने प्ररुण्या तैसे परम्पराय आचार्य प्ररूपते आए । तिनके भेद पाय-पाय अनेक भव्य प्राणी अनादि मिध्यात्व बन्धन तोड़ि सम्यग्दृष्टि भए । ताही का अनुसार लेय इहां भी सामान्य तत्व भेद का है। ताका रहस्य जानि अब भी भव्य तत्त्व ज्ञानी होऊ । इति जिनभाषित अनुसार सामान्य कथन ऐसे आदिम भूले मोरी टाके धरनहारे. अतत्त्व श्रद्धानी जीव कुगुरुन के उपदेशरूपी फांसी मैं परे, धर्मवासना-रहित, संसार भोग के अभिलाषी, समता-रस बिना उत्पत्ति भई हैं तृष्णा रूपी तप जिनकें, ऐसे ज्ञान चक्षु रहित अन्धसम, बालक सम लीला करनहारे, भोरे प्राणी, तिनको सोमबुद्धि धर्मार्थी जानिके, दयाभाव करि तिनके समझाव के अर्थ कुषादीन के प्ररूपे जे अनेक कर्तृत्व मत, तिन विषै भिन्न-भिन्न स्वइच्छा बुद्धि कल्पना करि, तत्त्व भेद कहे थे। तिन वादीनकं प्रगट असत् करि जिनभाषित जीवअजीव तत्य. द्रव्य गुण पर्याय सहित भिन्न-भिन्न नय करि बताए । सो यह सर्वज्ञ-भाषित तत्त्व मेद सत्य है । काहू वादी करके खंड्या नहीं जाय। ऐसे तत्व भेद है, सो प्रमाण है। राजीव- अजीव तत्त्व सत्य हैं। इति श्रो सुदृष्टि तरङ्गिणी नाम ग्रन्थ मध्ये, अतत्त्व श्रद्धान अन्य मतन सम्बन्धी जीव-अजीव तत्व विपरीत कथन प्ररूपहारे कुवादी तिनका भरम मेटि, जिनभाषित तत्त्वज्ञान वर्णनो नाम, सप्तम् पर्व समाप्तम् इन शुद्ध तत्त्व का जिस विषै भले प्रकार कथन पाइए, सो शुद्ध आगम है और आगम है सो काहू का उपदेश्या नाहीं । जो ऐसे शुद्ध आगम का करता है, सो ही सर्वज्ञ भगवान वीतराग शुद्ध जाप्त है। आप्त नाम ११७ त * मि गौ
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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