SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सु पर्याय तौ रतन लहरिवत् द्रव्य का परिणमन है। अरु व्यञ्जन पर्याय द्रव्य का प्राकार है। जैसे-नदी तो द्रव्य, अस नदी के दोऊ तटन की समुद्र पर्यन्त लम्बाई का आकार, सो नदी को व्यञ्जन पर्याय है । ता नदीमैं निरन्तर जल का प्रवाह चलना, रात-दिन पानी का बहना सो नदी का गुण है और नदी के जल में अनेक प्रकार तरंगनि का उपजना अरु ताही मैं विनशना, सो नदी की अर्थ पाय है। तैसे हो काल-द्रव्य का नदी को नाई निरन्तर वर्तना लक्षण गुण है। कालाणु-द्रव्य का मन्द गमन पल्टा खाना, एक आकाश प्रदेश 4 तिष्ठती जो कालाषु सो पलटि. दुसरे लगरी प्रदेश पावन सोन्ग हैसीयाका नाम समय है । सो यह समय काल की व्यवहार पर्याय है। इस समयतै, काल का सूक्ष्म अंश और नाहों। ऐसे-ऐसे समय असंख्यात होय, तब एक आवली नामा काल की पर्याय का भेद होय। रोषो-ऐसी हजारों आवलो व्यतीत होय, तब एक श्वासोच्छवास काल का प्रमाण है। सात श्वासोच्छवास काल का एक स्तोक नामा काल को पर्याय होय है और सात स्तौक का एक लव मात्र काल पर्याय होय है। साढ़े अड़तीस लव को एक नाली होय है इस नाली ही का नाम घड़ी है। दोय घड़ी का नाम एक मुहूर्त है। एक समय घाटि दोय घड़ी का नाम अन्तर्मुहुर्त है। तोस मुहूर्त का एक अहोरात्रि है। पन्द्रह अहोरात्रि का पक्ष होय है। दोय पक्ष का एक मास होय है। दोय मास की एक ऋतु होय है। तीन ऋतु का राक अयन होय है। दोय अयन का एक वर्ष होय है। सतरि लाख करोड़ि वर्ष अरु छप्पन हजार करोड़ि वर्ष इन सबनि को मिलाय एक पुरख काल होय है । ऐसे असंख्यात पूरब काल का एक पल्य होय है। दश कोड़ाकोडि चल्य का एक सागर होय है। अरु बीस कोड़ाकोडि सागर का एक काल-चक्र होय है।। ऐसे-ऐसे अनन्तानन्त काल-चक्र व्यतीत होय, तब एक काल का परावर्तन होय है। ऐसे काल की व्यवहार पर्याय का स्वरूप जानना। रोसे काल तौ द्रव्य, गुणवर्तना लक्षण और कालाणु से निपज्या जो समय, घड़ी, दिन, मास, वर्ष, पल्य, सागर, सो पर्याय हैं। गेसे काल-द्रव्य का लक्षण कह्या। आगे आकाश-द्रव्य । आगे आकाश तौ द्रव्य है। ताका अवगाहन देना गुण है। पर्याय लोकालोक प्रमारा है। ता आकाश में दोय भेद हैं। एक अलोक है, सो अनन्त प्रदेशो है तहाँ और द्रव्य नाही, शून्यता लिए है। । शुद्ध एक आकाश ही है। एक लोकाकाश है। तहां बट द्रव्य रचना सहित च्यारि गतिरूप संसारक धरे है। Te NEE
SR No.090456
Book TitleSudrishti Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages615
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy