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तिन मैं विरले मव्यात्मा सत्संग के निमित्त करि, जिन देव के वचन की प्रतीति करि, सम्यग्दर्शनादि मोक्षमारग योग्य सामग्री पाय, कर्म नाश करि शुद्ध होय, आगे मोक्ष पायें। इति सामान्य जीव तत्त्व कथन ।
आगे धर्म-द्रव्य वर्णन अब अजीव तत्त्वन मैं धर्म-द्रव्य है, सो ताका गुरा 'चलन सहाई' है। तीन लोक में तिष्ठते जे जीव, पुद्गल तिनहूँ गमन करते धर्म-द्रव्य सहाय करें है। जैसे— जलचर जीव, मच्छी जादि तिनके चलने जल सहाई है, प्रेरक होय गमन नहीं करावे है। जो मच्छादि जीव जल मैं चलें, तौ उदासीन वृत्ति सहित सहज ही सहाय होय है। तैसे यह धर्म-द्रव्य प्रेरक होय जीवादि पदार्थनको गमन नहीं करावे है। जो जीव पुद्गल अपनी शक्ति तैं गमन करें, तौ उदासीन वृत्ति तैं गमन मैं सहाय होय है। ऐसा अनादि-निधन इस द्रव्य का स्वभाव है। ऐरो चलन हा गुण सहित धर्म-द्रव्य की अनादि स्थिति लोक मैं जानना और इस धर्म-द्रव्य की पर्याय दोय प्रकार हैं । एक अर्थ पर्याय, सो तो द्रव्य का परिणमन है। सो तो व्यञ्जन पर्याय द्रव्य का आकार है। सो धर्म-द्रव्य की व्यञ्जन पर्याय, तीन लोक प्रमाण है। एक पटल रूप है, खण्ड नाहीं । अरु पुद्गल परमाणु के गर्तें नापि ती असंख्यात प्रदेशी होय । ऐसे इसका स्वरूप है। सौ धर्म तौ द्रव्य है गुण चलन सहाय है। पर्याय तीन लोक है ता सामानि है । इति धर्म-द्रव्य ।
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आगे अधर्म-द्रव्य । अब अधर्म-द्रव्य है अरु ताका गुण 'स्थितीकरण' है। तीन लोक मैं तिष्ठते जेते जीव पुद्गल तिनक स्थिति करने में सहाय है। प्रेरक होय स्थिति नाहीं करावें है। जो जीव पुद्गल अपनी शक्तितें स्थिति करें तो यह अधर्म-द्रव्य उदासीन वृत्ति घरे स्थिति करतें सहकारी है। जैसे—राहके चलनहारे पंधीकू ग्रीष्म ऋतु में वृक्ष को छाया स्थितिकूं करते सहाय होय है। वृक्ष बुलायक पंथीकूं अपनी छाया में बैठारि, सहाय नाहीं करै है। पंथी अपनी ही इच्छा तैं ताप मेटवेक वृत्त नीचे तिष्ठे, तौ उदासीन वृत्ति सहित पंथी कूं स्थितिमैं कारण है। ऐसे ही अधर्म-द्रव्य का गुण स्थित करना जानना और अधर्म-द्रव्य की पर्याय भी अर्थ पर्याय, व्यञ्जन पर्याय करि दोष प्रकार हैं। सो अर्थ पर्याय तौ रतन लहरिवत् द्रव्य परिणमन है और व्यजन पर्याय धर्म-द्रव्य प्रमाण लोक के आकार है। ऐसे अधर्म- द्रव्य के गुण पर्याय कहे। इति अधर्म - द्रव्य ।
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आगे काल-द्रव्य । आगे काल तौ द्रव्य है। गुरु ताका वर्तना लक्षण है। पर्याय दोय प्रकार हैं। सो अर्थ
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