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पवान ३६ ।।
उपधानसंबंधी विशेष ज्ञानव्य
(२२) बांद का मावट्ठा अकालवृष्टि है। पर हम से उपवान में दिन नहीं बढ़ना । (२३) कार्तिक आदि तीन चतुर्मास में ढाई दिन की जो असम्झाय गिनी जाती है, वह उपधान में नहीं मानी जाती । (२४) आवश्यक कारण उपस्थित होने पर एकही साथ दो एकासन कराने पड़ते हैं।
(२५) एक ही साथ ४ उपधान बहन करने से विशेष कारण से जो एक या दो अट्टारिय (२, दिन) करने में आत्रे, या एक है ही अठारिया (२० दिनका उपधान) वहन करने में आये, तो तदनंतर एक यरस के भीतर अवशिष्ट बद्दन करें तो वह अढारिया (२० दिन) क्रिया में गिना जाता है । (रम के बाद के नहीं) चौथा और छठवाँ उपधान वहन करने के बाद जो छैमास के भीतर माला न पढ्ने । तो, वे दोनों पुनः वहन करने पड़ेंगे।
(२६) मुद्री५-८-१४ और बढ़ी८-१४ इन तिथियों के दिन जो एकासन आना हो आयंबिल कराना अथा यथाशक्ति ।।
(२६) यदि पधान करने वाला बालक हो, वयोवृद्ध हो, तरुण होते हुए भी शारीरिक शक्ति से कमजोर हो तो उपधान तप कर प्रमाण यथाशक्ति समझना ।
(२८) उपधान में प्रवेश पाने के प्राथमिक ३ दिनों में नवीन वस्त्र या उपकरण घर से ला सकते हैं, बाद में नहीं।
(२९) माला पहिनने के पूर्व दिन, रेशम इत्यादि द्वारा निर्मित माला महामहोत्सब पूर्वक जलूस के रूप में घुमकर, गुरु समीप | ले जाकर वासझेप से प्रतिग्नित कराने के बाद अपने या संघ द्वारा निर्णीत गृह में सजाकर ऊँचे पाट पर रखना और वहां पर पहिनने & वाले रात्रि जागरण करे।
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