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समोपधाना
(३०) उपधान तप करने वाले को तप, स्मृति निमित्त सचित्तादि का त्याग, ब्रह्मचर्यादि का नियम, पर्व तिथिको पौषध, १४|| नियम धार सामायक प्रशिकलाम, पूज, दिया। सादि वार्षिक कार्ड में विशेष तत्पर रहना चाहिये ।
आलोचना
ग्रहण विधि [उपर्युक्त पंक्तियों के अतिरिक्त और भी अनेक अपयादिक नातव्य है । उपधान कराने वाले अर्थात् क्रिया करवाने वालोंको || चाहिये, कि वे गुरुगम से जान लें और उनका उपयोग विधि-विधान के अन्यों को देखकर करें अथवा अपनी परंपरा अनुसार करे।]
॥आलोचनाग्रहणविधि ॥ उपधान पूर्ण होने के बाद उपधान करने वाला श्रावक व श्राविका गुरु के पास आ के खमा० गुरुवंदन करें । पीछे खमा० "इरियाबहि" करे, फिर खमा. शिष्य कहे, इच्छा. सोधि मुहपत्ति पतिलेलु' ? गुरु कहे "पहिलेह" इच्छं ऐसा कहकर मुद्दपत्ति की पहिलेहना करे । पश्चान् दो बंदन दे शिष्य ख० इच्छा. "सोधि संहिसाई" गुरु कहे "संदिसावेह" शिष्य खब. इच्छा"सोधि करेमि" गुरु कहे "करेह" शिष्य कहे "तहत्ति” फिर तीन नवकार गिने । पीछे शिष्य कहे इच्छा० "पसाय करी आलोचना करायोजी" ऐसा बोल कर गुरुमुखसे आलोचना ग्रहण करे । आलोचना देने वाले (गुरु) को चाहिये, कि उपधान मे आलोचना लगी है वे सर्व अपनी |२ गच्छ परम्परा (आचरणा) के अनुसार तथा उपधान विधि और "प्रायश्चित्तविधि" में देखकर के यथा शक्ति अनुसार आलोचना
देना। तथा रजस्वला के तीन दिन के अहोरात्र पौषध, और तपस्या, पुन: उपधान पूर्ण होने के बाद करनी पड़ती है। ॥ समाप्त। सप्तो.
दिप- "विधिप्रपा" देसविरति ० । ज्ञान-दर्शन-चारित्र और पौषध भादि का प्रायश्रित । २ भालोचना के पौषध सर्व अहोरात्र का करना ।
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