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________________ 3 जलिरंगारे, खाविजंती हकिलन्ता ॥ २७ ॥ राइयपमाणखण्डे, काऊणं केवि कडुरडंता वि । कुम्भीपाए पावा, [ पचन्ति य सागपत्तं व ॥ २८ ॥ अइउण्हतावियासुं, केवि तलिज्वंति पप्पडुध फुडं । चूरिजंति य केई, घडच मुग्गरपहारेहिं ॥ २९ ॥ केवि विपिननीरपूर भरियाए । वेयरणीए दत्ति - पुकरन्ता विविजन्ति ॥ ३० ॥ केई तीए पुलिणे, बसहुब महाभरं वहिज्जन्ता । पलयाणलपज्जलिए, भट्टे चणयब फुट्टन्ति ॥ ३१ ॥ छायत्थिणो य केई, असिवणपत्ता समीरखित्तेहिं । सव्वंगं छिज्जन्ती, पहरणसरिसेहिं पत्तेहिं ॥ ३२ ॥ इय नेरइयसरूवं, सुदारुणं पासिऊण पडिबुद्धा । सुरहिच वग्धतत्था, सहब परपुरिसकरपुट्ठा ॥ ३३ ॥ हंसिब सेणन (त) ट्ठा, मूसिव विडाल - दंसणपलाणा । सा पुप्फचूलजाया जाया भयवेविरसरीरा ॥ ३४ ॥ जुगलं | अप्पाणं नरयगयं व पिक्खमाणा मणमि संबुद्धा । सर्व्वं सुविणसरूवं, सा साहइ निययदइयस्स ॥ ३५ ॥ सोबिड तीए दुसुविणउवसमणत्थं पभूयविभवेहिं । सन्तियनिउणजणेहिं, कारवइ सन्तियं कम्मं ॥ ३६ ॥ पुचं व पुष्फला, सुयापबोहाय पुप्फवइतियसो । वारं वारं नरए, दंसइ साबिहु भाइ पहणो ॥ ३७ ॥ तो सो गोसे नियपिययमाह सहिओ सांगओ सबे । दंसणिणो आणाविय, नरयसरुवाइ पुच्छे ॥ ३८ ॥ तेविद्दु भणन्ति नरवर ! दारिहं रोगसोगसन्तावा । परवसभावो गुत्तीर, ठाणमिय नरयचिण्हाई ॥ ३९ ॥ सुमिणविसंवायाओ, तत्रयणमसधयं वियाणित्ता । भोडेऊणं वयणं, ते लहु देवी विसजेई ॥ ४० ॥ रण्णा अण्णयपुत्तायरिओ हकारिकण अह पुट्ठो । जहठियनरयसरूवं, तेसिं पुरओ परूबेड़ ॥ ४१ ॥ देवी
SR No.090451
Book TitleSamyktvasaptati
Original Sutra AuthorSanghtilakacharya
Author
PublisherNaginbhai Ghelabhai Zaveri Mumbai
Publication Year1972
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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