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________________ समक्खं नियदा-रगाण कारेह करगहणं ॥ १३॥ पुष्फबई तम्भज्जा, सावयधम्मुज्जया अकज्जाओ । वारंतीवि न गणिया, भूवहणा कुम्गगहिणा ॥ १४ ॥ सिरिपुष्फचूलकुमरो, विसयमुहं तीइ पूप्फचूलाए । सद्धिं अणुहबमाणो, ममेइ कालं निमेसुव्य ॥ १५ ॥ कमसो अकित्तिकदम-मलिणे निवपुप्फकेउयंमि मए । सिरिपुष्फचूलराया, पालइ नीईइ महिवलयं ॥ १६ ॥ तइया अकजकरणा-चसरे पदणा विमाणिया सन्ती । पुप्फबई निवेया, पडिचन्ना जिणवरचरितं ॥ १७ ॥ निवजं पयजं, पालिय खालियपमायमलपडला । सा मरिऊणं सुहझाणसङ्गया दिवि सुरो जाओ ॥ १८ ॥ ओहि जाब पउंजइ, सो तियसो ताव सोयरेण समं । पिक्खेचि पुष्फचूलं, भोगपरं चिन्तिउं] लग्गो ॥ १९ ॥ मम आसी पुवभवे, पाणाओ(उ)वि वल्लहा सुया एसा । ता तह करेमि अहुणा, जेण न नरए फुडं पडइ ॥ २० ॥ इय चिन्तिय पडिबोहण-विहियमई पुप्फवइ वरो अमरो । निसि सुत्ताए सीए, नरयदुह दसए। एवं ॥ २१॥ साहाविय तिसु उण्हा, मीस चउत्थीइ सीय उवरितिगे। परमाहम्मियअन्नुन्नुदीरणा वेयणा तत्थ ॥२२॥ अइसकडमुहघडियालयाओ असुरेहिँ फडुरडतसरा । कड्विजन्ति हु केई, जन्ताओ लोहतन्तुष ॥ २३ ॥ ताडिजन्ति | य केई, सिलायले बजकण्टयाइण्णे । असुरोहिं गहियचलणे, खालणपारद्धवसणं व ॥ २४॥ पीडिजन्ति य केई, उच्छु पिव लोहजंतममि । करवत्तेहिं केई, दारुच वियारियजन्ति ॥२५॥ आलिकाविजंती, केई लोहित्थिमग्गितवियतणुं । खाविजन्ति समंसं, छिन्देउं केवि छुरियाहि ॥ २६ ॥ तिण्हातरला केई, पाइजती य उण्हतउयाई । केबिहु 44-4 - 4
SR No.090451
Book TitleSamyktvasaptati
Original Sutra AuthorSanghtilakacharya
Author
PublisherNaginbhai Ghelabhai Zaveri Mumbai
Publication Year1972
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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