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________________ B॥ १९ ॥ जो रण्योऽलंकार लद्धं अप्पेइ तस्स नहु दोसो । जो नप्पिसइ पत्तं भविस्सइ तस्स उण दंडो ॥ २० ॥ अह पोरजुया रण्या पुरिसा घरसोहणट्ठमाइट्ठा। तं पासिवि विजयघरे किमेयमिह तेहि सो पुट्ठो ॥ २१॥ स भणइ न मुणामि अहं कहं न जाणासि ? तेहि इय भणिओ । धरिऊण य सो रण्णा दिन्नो तेणावि वहगाणं ॥ २२ ॥ पञ्च खं चिय चोरं नाउं तं कोचि नहु मुयावेइ । जीवनिरासो विजओ तत्तो जक्खं भणइ दीणो॥ २३ ॥ मन्नावसु मित्त! - निवं कहंपि दंडेण चंडएणावि । मह जीवियं दयान सु तो जक्खो विनवई निवं ॥२४॥ सामिय ! मुंचसु मित्तं दंड काऊण तो नियो भणद ? । जह मुगई जान हो एसो तो किं न अइरुहरं ? ॥२५॥ सोऽवि भणइ सुगईइवि पुण्ण जीवंतओ नरो भई । पावइ ता देसु जिय कुविउध तओ भणइ राया ॥ २६ ॥ जइ मह घराओ तिल्लेण भरिय पत्त गहेवि अचयंतो। बिंदुपि भमिय सयले णयरे ठावेइ मह पुरओ ॥ २७ ॥ तारक्खामी एवं इय निश्वयणं भणइ सो तस्स। विजएणवि पडिवन्नं तं सचं जीवियवकए ॥ २८ ॥ अह पउमसेहरनियो सयलस्स पुरस्स आइसइ लोए। वीणावेणुमयंगां पइठाणं वायह अवस्सं ॥ २९ ॥ रंभातिलुत्तमउमासुचंगअंगं पर्णगणाण गणं । नचावह सर्विदियसबस्सहरं पदहरंपि ॥ ३० ॥ विजओ अइरसिओऽविहु मरणभएणं जिइंदियवियारो। तिल्लपडिपुण्णपत्तं भामेइ पुरे | निरुद्धमणो ॥ ३१ ॥ तिलस्स भायणं तं तत्तो जत्तेण मुत्तु निवपुरओ । विजओ नमिरो रगणा किंचिवि हसिऊण इय भणिओ ॥ ३२ ॥ तडितरलाइं मणई-दियाइ रुद्धाइं कहं तए? विजय ! । एरिसपिच्छणयाइसु अइमित्तं यमाणेसुं 056-1945
SR No.090451
Book TitleSamyktvasaptati
Original Sutra AuthorSanghtilakacharya
Author
PublisherNaginbhai Ghelabhai Zaveri Mumbai
Publication Year1972
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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