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________________ *** * * ॥१११ ॥ जाव न ताडिसमिमं ताव न सञ्चं कहिस्सए एस । चोराण लक्षणमिणं ते मोणं त्रिय कुणंति । |॥ ११२ ॥ इय चिंतिय अलेणं बद्धणं बंधिउं मुणिंदसिरं । कीलयभामणजोगा अगाढयरं कुणइ चम्मं ॥ ११३ ॥ HAपावनिरयस्स एयस्स कह मुहं पिक्खिमो दुरप्पस्स । इय नयणा तस्स तया नीहरिय अहोमुहा जाया ॥ ११ ॥ स मुणी जाणइ बद्धं संजमरजस्स पट्टयंधुवमं । भवतावहरे य तहा कसायहारे सुहासारे ॥ ११५ ।। शायइ मुणी मणम्मी किंन मए अज अज्जियं सुकयं? । जाजावरपाणेहिं मइ जीवह जइ इमो पक्खी ॥११६॥ उकंच-खस्थावस्थास को नैव, कृपां कुचात अन्तु । गतु प्राणप्रहामेषि, कृपालुः स कृपापरः ॥ ११७ ॥ उवयारं के धणिणो धणेणार न कुणंति इत्थ नहु चुजं । पाणपयाणेणं पुण जे सत्तुवयारिणो ते य ॥ ११८ ॥ रे जीव ! जायणाओ काउ न सहियाउ दुगइपत्तेणं ? । एसा पुण सकयत्था जा जाया जीवरक्खकए ॥ ११९ ॥ इय उवसमरसभावियमणस्स उप्पन्नकेवलसिरिस्स । मेयजस्स य रिसिणो सिद्धिसिरी झत्ति अणुरत्ता ॥ १२० ॥ अह तग्गिहम्मि फालिजमाणइंधणयदारुणो खण्डं। उप्प इऊणं लग्गं गलमूले तस्स कुंचस्स ॥ १२१ ॥ तम्घायपीडियाओ कुंचगलाओ य ते जवे दछु । पडिए सुवण्णयारो मणम्मि घणमणुसयं वहइ ॥ १२२ ॥ रणो भएण दिक्खं गहिऊण सुवण्णयारओ तत्तो।। अहिणंदह महिनाहं, उच्चसरं धम्मलाभेणं ॥ १२३ ॥ भयगहियाविह दिक्खा पालेयधा पयत्तओ तुमए । इय सिक्सविडं राया ! पेसइ तं सुण्णयाररिसिं ॥ १२४ ॥ एयं चारु चरित्तयं तिजगईलोयस्स विम्हावयं, मेयजस्स महेसिणो । *
SR No.090451
Book TitleSamyktvasaptati
Original Sutra AuthorSanghtilakacharya
Author
PublisherNaginbhai Ghelabhai Zaveri Mumbai
Publication Year1972
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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