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| भणेइ मेयं - आणावसु पुरबहिं परासिं । नितयणयण्हाणहेउं तेणावि तहेव तं विहियं ॥ ९८ ॥ नियछत्ततले जलनिहिजलंमि पहाविअ नित्रोऽयि मेयजं । नियकन्नं परिणावह गुरुआ लुंपति नहु वायं ॥ ९९ ॥ तह अठाणवि ताणं इब्भाणं कन्नगाओ परिणेउं । नवनेहनिष्भरमणं, रमेह सो पणइणीनवगं ॥ १०० ॥ बारसवरिसे तेणं तहइयाहिंपि जाइओ स सुरो । देइ तओ चउवासं वरिसे भुंजेइ सो भोए ॥ १०१ ॥ भोगेहिं रोगेहि वनिविष्णो परिहरितु गिहवासं । नवभज्जाहि समेओ, मेयज्जो लेइ पत्रज १०२ || गुरुण नवपुवाणि य स चक्कपट्टीय नव - निहाणाई | पाविय मोहनरिंदं निकंदर सयलवलकलियं ॥ १०३ ॥ अह रायगिद्दे नयरे विहरंतो अन्नया स मुणिसिंहो । इरियासमिइसमेओ पत्तो सुण्णारगेहम्मि ॥ १०४ ॥ सेणियनिवआइट्ठो असयं पइदिणं सुवण्णजवे । स कुणइ तेहिं राया जिणपुरओ सत्थिर्य देइ ॥ १०५ ॥ तम्मि समए सुवण्णे घडिऊण जवे सुवण्णयारो सो । केणवि कज्जेण गओ घरस्स अन्तरे सहसा ॥ १०६ ॥ कुंचो पक्खी भक्खरभमेण तस्संगणम्मि कीलतो । गिलइ जने सोवण्णे पिक्खंतस्स य मुणिंदस्स ॥ १०७ ॥ तो ते य अपासंतो सुवण्णयारो भणेइ मेयज्जं । केणंगणाओ हरिया सोवण्णजत्रा स निवभीओ ? ॥ १०८ ॥ देवचणस्स समओ अइकमइ दुद्धरस्स रायस्स । ता पसिऊणं साहसु दयापरा हुति मुणिसहा ॥ १०९ ॥ कुंचविहगस्स एसो उयरं फोडिस्स फुडं पात्रो । इय वीमंसिय स मुणी सोणवयं चेव सेवेह ॥ ११० ॥ जाणतो सुष्णारो चोरं तं चेव मुणिवरं मूढो । मोणावलंषणाओ इय चिंतर निययचित्तम्मि