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पहु, सिरिमं जीवाहयारई नाम । आवयगयं अणुद्धिय, न जिमइ सुणिउं छुहत्तोऽवि ॥ ५६ ॥ थलमग्गंमि उ पुरिसे, स पेसए दुहियलोयताणकए । बहुदेसभासचउरं, जलमग्गे कीर पंचसयं ॥ ५७ ॥ पचय कुंडलपडिए, ते पोए पि| क्खिऊण रायसुओ । आगंतॄणं सिंहल - पहुणो रण्णो निवेयंति ॥ ५८ ॥ सोऽवि सचिवेहि सद्धिं, गिरिकुंडल्याउ जममुहाउ | उद्धरणम्मि उवायं, चिंतेई ताण पोयाणं ॥ ५९ ॥ न य भुंजइ तो राया, ताणुद्धरणम्मि विगलिओ - बाओ । न य नियमेरं गरुया, लंघंति कयावि जलहिघ ||६० || तो बीयदिणे पडहं, वायाबइ भूवई निए नयरे । जो पोए आई, तस्स पयच्छामि धणलक्खं ॥ ६१ ॥ तं सुणिय कण्णधारो, एगो बुढो मणम्मि चिंते । जाणतोऽहमुवायं, किं न धणं लेमि नरवणो ? || ६२ || नित्थारयामि तणए, दुक्खसमुद्दाओ पवहणजपि । अथिरेहिं पाणेहिं, | तो पडहं छिवह गंतूणं ॥ ६३ ॥ रायपसाया लर्द्ध, सवं दत्रं सुवाण दाऊणं । लहुपवहणेण चलिओ, स नागदत्तंतियं पत्तो ॥ ६४ ॥ तेसिं पंचसयाणं, पोयाणं अहिवरं वियाणित्ता । तं नागदत्तवणिवं भणेह नियसामिणो चरियं ॥ ६५ ॥ तरस य पुरओ साहइ, निग्गमणोवायमेस पोयाणं । मग्गविऊ बुडुनरो, सुगुरू भवसायराउ ॥ ६६ ॥ संबोऽवि पोअलोओ, टहरिअसवणो सुणेइ तत्रयणं । सोऽवि हुतस्स य पुरओ, निग्गमणोवायमाइसइ ॥ ६७ ॥ सेलस्स अस्स सिहरे, महई देवरस मंदिरे ढक्का । तीए सहं सोउं, गुहामुहे सयगुणीयं ॥ ६८ ॥ असंभंता भारंडपक्खिणो नहयलमि उडति । वलयाउ निस्सरंती, तप्पक्खपणुलिया पोया ॥ ६९ ॥ जुयलं । एगो पुण सो मरिही जो, ढक्कं बाइउं नरो