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________________ यं किंचिवि सत्यमाइयं तं च । पन्नावलेण सयलं निम्मियं पिव स बाहरइ ॥ ३२ ॥ सिरिनागहत्थिसूरी संघ सदा-1 विउं इमं भणइ । सम्मं गुणालित्तो पालित्तो एस लहुओवि ॥ ३३ ॥ अजदिणाओऽवस्सं बहुमाणेणं सयावि I दट्टयो । इय गुरुचयणं तेणवि तग्गुणरत्तेण पडिबन्नं ॥ ३४ ॥ जुयलं । अह सो भावुवहाणिण ऊसाराकप्पएणणु जाओ। सम्मिवि सत्तत्थे कओवहाणच जोगति ।। ३५सिरिसंघसम्मएणं निययपए सरिणा तओ ठविओ।। पालित्तयआयरिओ सो जाओ सयटजयपयडो ॥ ३६ ॥ सिरिनागहत्यिगुरुणा संघो वुत्तो अहं विहारस्स । असमत्यो । तो एसो सूरी अन्नत्थ विहरेउ ॥ ३७॥ सासणउन्नयकारी एसो विहरेउ जउणनइपरओ । अन्नह महाअणत्यो इमस्स भावी न संदेहो ॥ ३८ ॥ तो संघो आएसं पसिऊणं देउ जेण महुराए । थमं नमेह एसो तो तेणवि सुरिणो| भणिया ॥ ३९ ॥ जत्थ य जत्य य एसो विहरिस्सइ देसमंडलाईसुं । तत्थ य तत्थ य नूणं संघस्स समुन्नई होही वंदिजह हत्थ सयललोषणं । तन्निकलंकयाए माहप्पं नियमकलाए ॥४१॥ ता एसो |लहुओविहु गुरुयाण पहं सया पयासिहिसि । उइओवि हु किं सूरो गिरीण सिरि घरह नो पाए १ ॥ ४२ ॥ एस |पभावगचूडा-रयणं जत्तेण रक्खियबो य । गुरुभणिओ उण अत्थो न होइ कइयाबिहु असथो ॥ ४३ ॥ इय वीम-1 सिय संघो रक्खट्टा तस्स कुणइ पत्थाणं । महुराउयरिं तो नागहत्थिसूरी कहइ एवं ॥ ४ ॥ कच्छ ! इमा वि-13 जाओकहियाओ अम्ह पुबसूरीहिं । ताओ मए तुह दिन्ना पउंजियवा य संघत्थे ॥ ४५ ॥ जं पायलेवविज्जा तइया बालोचि मर्य
SR No.090451
Book TitleSamyktvasaptati
Original Sutra AuthorSanghtilakacharya
Author
PublisherNaginbhai Ghelabhai Zaveri Mumbai
Publication Year1972
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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