SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 251
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ . . निहामुद्दो महबाहू सहोयरं वराहमिहरं भणइ-बच्छाहं संजायभवविरागो एसिं गुरूणं चरणमूले सवसंगपरिचार्य करिय अणवजं पधज्जमायरिस्सं, भवया पुण घरकज्जेसु सजेण होयचं, तओ वराहमिहरो तं पइ जंपइ-भाय ! जइ तुर्म संसारसायरं तरिउमिच्छसि ता कहमहं भग्गपवहणजणुच तत्थ मजेमि, जओ-सकरसहिया, खीरी दियाण जह बलहा हवई आहेया i ताकि सा इयराणं, नराण नहु होइ अभिरुइया ? ॥ १॥ एवं दिक्यासाहिलासं जाणिऊण मा एसो भवाडये निवडउत्ति भद्दबाहुणा अणुमन्निओ। तो दोवि मायरा गुरुपञ्चरखं सर्व सावज्ज पञ्चक्खयंति । तओ भद्दवाहू गहियदुविहसिक्खो कमेण गुरुवयणकमलाओ भसलुष मयरंदं चउद्दसपुषसुत्तत्थरहस्सं. पाऊण सुहिओ सुविहियचूडामणी जाओ । इओय सिरिमं सिरिजसभहसूरीण तस्समाणविज्जाटाणो असमाणचरित्तो अजसंभूयविजओ नाम सीससेहरो आसि, अन्नम्मि दिणे सूरिपयजुग्गे सुयकेवलिणो मुणिय संभूयविजयभवाहु नामए मुणिवरे गणहरपए ठाविऊण सयं सिरिजसभद्दसूरिणो संलेहणं करिय सुरपुरसिरीए अवयंसभावमुवगया। ES तओ ते ससिसूरुच मिच्छत्ततिमिरं गोवित्वरेण हणंता महिमंडले पुढो पुढो विहरति । अह सो वराहमिहरमुणी ४ अप्पमई चंदसूरपन्नत्तिपमुहे केऽवि गंथे मुणिऊण अहंकारविकारनडिओ सूरिपयमहिलसंतो अजुग्गुत्ति गुरुहिं नाण बलेण नाऊण न गणहरपए ठाविओ इय सुयवयणं सरंतेहि-बुड़ो गणहरसहो, गोयममाईहिं धीरपुरिसेहि। जो तं ठवइ अपत्ते, जाणतो सो महापावो ॥ १॥ तओ वराहमिहरस्स जिट्ठसहोयरेऽवि सिरिभद्दबाहुगणहरे परमा **%%AA% ख
SR No.090451
Book TitleSamyktvasaptati
Original Sutra AuthorSanghtilakacharya
Author
PublisherNaginbhai Ghelabhai Zaveri Mumbai
Publication Year1972
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy