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| जोगाउ न चयंति ॥ २२ ॥ दिवसा बाहूहिं तरिज्जए सायरो अपारोऽवि । नहु नियमणसंभूओ मयणुव असग्गहो कइया ॥ २३ ॥ कयनिच्छओ ममि मलमुणी तस्स वायपादक । म क मंषि हुन य पुच्छेद विग्धकए ।। २४ ।। तो लद्धावसरो सो दिट्ठि परियंचिऊण अजाए। गहिऊण पुत्थयं तं मल्लो इय वाइउं लग्गो ॥ २५ ॥ हरिसेण पढमपत्तं, करे करेऊण आइमसिलोगं । वाएइ गंथवित्थर - परमत्थपासणं एयं ॥ २६ ॥ विधिनियमभक्तवृत्तिव्यतिरिक्तत्वादनर्थकमबोधम् | जैनादन्यच्छासनमनृतं भवतीति वैधम्र्म्यम् ॥ २७ ॥ चिंतह आइसिलोगं जा मीलिवि नयणपंकए एयं । ता सासणदेवीए अवहरिओ पुत्थओ सहसा ॥ २८ ॥ उम्मीलिय नयणो उण पुरओ सो पुत्थयं अपिच्छंतो । रोरुव गयनिहाणो, वित्थचित्तो मलइ हत्थे ॥ २९ ॥ हाहा विठत्तेणं लंघतेणं गुरूण इय आणं । पुत्थयरयणं गमियं नवरि मए चरणस्यपि ॥ ३० ॥ अविहिपरेण मएणं, जारिसयं कम्म काउमारद्धं । तारिस संपत्तं फलमवियलदुक्ख सयजणयं ॥ ३१ ॥ पच्छातावेण मुणिं अज्जा दीणाणणं पलोइत्ता । पुच्छर बच्छ ! विसन्नो किं दीससि ? मुसियसारुच ॥ ३२ ॥ तो जणणीए पुरओ नियवुत्तंतं भणेइ मलमुणी । साविहु संघस्स पुरो कहे अइदुक्खसंजणयं ॥ ३३ ॥ तं सुणिय अइविसन्नो संघो झूरे नत्थि अन्नत्थ । नयचकपुत्थयमिणं कर्हिपि चिंतामणिव जए ॥ ३४ ॥ ता मलो उछ्वइ नयचक्कं जाव नेव पावेमि । ता वल्लभोयणपरो, गिरिवामहं करिस्सामि ॥ ३५ ॥ उग्गमभिग्गहमेयं मुणिउं मलस्स साहुमलस्स । संघो अईव दुक्खं धरद्द मणे
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