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________________ * * गंध, नियवि निवो नियमणम्मि अइदुहिओ। विज्जाणं दसेइ तेवि असज्झत्ति मुत्तु गया ॥ ४१ ॥ तत्तो अरण्णमझे, पासाप ठाविया अबीया सा । रगणा तीए रक्खणकए भडा चउदिसं ठविया ॥ ४२ ॥ किं खेएण कएणं, अवस्सभु(त)धयम्मि पावम्मि ? । ता सहसु न छुट्टिजह पलायमाणेहिं कम्माओ ॥ ४३ ।। एवं सा धीरती, अप्पाणं जाय । चिट्ठइ दुहत्ता । ता पासायगवक्खे, कीरजुयं नियइ निवदइया ॥ ४४ ॥ रयणीऍ पढमपहरे, कीरीए वल्लहो इमं । भणिओ। किंपि अपुवं साहसु, कहाणर्य मणविणोयकए ॥४५॥तीए वयणं सुणिउं, हियए मयणावलीवि चिंतेइ। है सुटु सुईए वुत्तं, खेयविणोओ मयायि जओ ॥ ४६ ॥ कीरेण तओ कीरी भणिया, फ्यिए ! दुहा कहा होइ । चरिया व कप्पिया वा ता भण कीए मणिच्छा ते १ ॥ ४७ ॥ तीए बुत्तं पिययम ! चरियं चरियं कहेसु सो भणइ । | आसि जयसूरखयरो, तब्भज्जा सुहमई नाम ॥ ४८ ॥ जिणपूर्य काऊणं, अट्टाययपधयम्मि पियसहिया । पुछि | बिहियदुगंछा, पच्छा पूएइ सा साहुं ॥ १९ ॥ पालिय सावयधम्म, सोहम्मे सा सुरी समुप्पन्ना । चविय तओ : मयणावलिनामा निववल्लहा जाया ॥ ५० ॥ मयणायलीवि एवं, पुधभवं मुयमुहाओ सोऊणं । संजायजाइसरणा, अप्पाणं निदए सुइरं ॥ ५१ ॥ तत्तो साहइ कीरी, सा कत्थ बसेइ संपयं नाह ! । सो आह तुज्झ पुरओ, एसा | मयणावली दइए ! ॥ ५२ ॥ पुत्वभवे अन्नाणा दुगंछिओ जं मुणी तओ पावा । दुस्सहदुगंधदेहा, संजाया इत्थ ज|म्मम्मि ॥ ५३ ॥ जइ एसा सत्तदिणे, सम्मत्ते निचला तिसंझमवि । गंधेहि जिणं पूयह, तो मुच्चइ दुरभिगंधाओ * ** *
SR No.090451
Book TitleSamyktvasaptati
Original Sutra AuthorSanghtilakacharya
Author
PublisherNaginbhai Ghelabhai Zaveri Mumbai
Publication Year1972
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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