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तृतीयोऽध्याय अथ शम्भवनाथस्य कथा संवर्ण्यतेऽधुना |
यो दत्तधवलं कूटमास्थाय प्राप सिद्धताम् ।।१।। अन्वयार्थ - अथ = अनन्तर, यः = जिन्होंने, दत्तधवलं कूटं = दत्तधवल
नामक कूट पर, आस्थाय = बैठकर, सिद्धताम् = सिद्धदशा को, प्राप = प्राप्त किया. (तस्य = उन) शम्भवनाथस्य = शम्भवनाथ तीर्थङ्कर की, कथा = कथा, अधुना = अब.
संवर्ण्यते = वर्णित की जाती है। श्लोकार्थ - सगरचक्रवर्ती के यात्रावृत्त और अजितनाथ स्वामी की कथा
को बताने के बाद कवि उन शम्भवनाथ तीर्थङ्कर की कथा का वर्णन कर रहा है जिन्होंने सम्मेदशिखर के दत्तधवल कूट
पर पद्यासन से बैठकर सिद्धदशा प्राप्त की थी। जम्बूद्वीपे पूर्वस्मिन्विदेहे भाग उत्तरे।। सीतानधाः कच्छनाम्नि देशे क्षेमपुरं शुभम् ।।२।। अन्वयार्थ - अत्र = इस, जम्बूद्वीपे = जम्बूद्वीप में, पूर्वस्मिन् = पूर्व, विदेहे
= विदेह में. सीतानद्याः = सीता नदी के, उत्तरे भागे = उत्तरभाग में, कच्छनाम्नि = कच्छ नामक, देशे = देश में, शुभं
= शुभ, क्षेमपुरम् = क्षेमपुर नगर, (आसीत् = था)। श्लोकार्थ - इस जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में सीता नदी के उत्तरी भाग
में एक सुन्दर क्षेमपुर नामक नगर था। राजा विमलयाहोऽभूत्तत्रासौ काललब्धितरु । मेघ उत्पन्नो विनष्टश्य नभसि प्रेक्ष्य तत्क्षणात् ।।३।। संसारसौख्यं सकलमसारमयबुद्ध्य वै । विरक्तस्तृणवद्राज्यं त्यक्त्या विमलकीर्तये ।।४।।