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________________ श्री सम्मेदशिखर माहात्य सिद्धवर नामक कूट पर आजतनाथ तीर्थङ्कर की स्थापना करके और सारे सम्मेदपर्वत को तीन बार प्रदक्षिणा देकर जय--जय के घोषों से गुंजता हुआ महोत्सव कराया। पञ्चाश्चर्याणि तत्रासन् देववृन्दकृतानि च। तानि दृष्ट्वाखिलास्तत्र विस्मिता अभवन्किल ।।६।। अन्वयार्थ - तत्र च = और वहाँ, देववृन्दकृतानि देवताओं द्वारा किये गये, पञ्च = पाँच, आश्चर्याणि -- आश्चर्य, आसन् = हुये, तानि = उन आश्चयों को, दृष्ट्वा = देखकर, तत्र = वहाँ, अखिलाः - सारे ही लोग, किल = सचमुच, विस्मिताः = आश्चर्यचकित, अभवन् = हो गये। श्लोकार्थ - और वहाँ देवताओं द्वारा किये गये पाँच आश्चर्य हुये जिनको देखकर वहाँ सभी लोग सचमुच आश्चर्यचकित हो गये। सहस्रमुनयस्तत्र कूटे सिद्धयराभिधे । श्रीमताजितनाथेन सार्ध मुक्तिपदं गताः ।।१७।। अन्वयार्थ · तत्र = वहाँ, सिद्धवराभिधे कूटे = सिद्धवर नामक कूट पर, श्रीमता - केवलज्ञान, लक्ष्मी से सम्पन्न, अजितनाथेन = तीर्थङ्कर अजितनाथ के, सार्ध = साथ, सहसमुनयः = हजारों मुनिराज, मुक्तिपदं = मोक्षपद को, गताः = प्राप्त हुये । श्लोकार्थ - सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र पर सिद्धवर कूट पर से हजारे मुनिराजों ने अनन्तज्ञान सम्पन्न भगवान् अजितनाथ के सार ही मुक्तिपद प्राप्त किया। एकावुदप्रमाणास्तत्पश्चादुक्तमुनीश्वराः । तत्र वाथ चतुर्युक्त्ताशीतिकोटिप्रमाणकाः।।१८।। पंचान्तचत्वारिंशभिः लक्षैः परिमितास्ततः । श्रीशम्भवा त्यतिप्रौढ़ा मुक्ताः सिद्धाः स्यनन्तकाः ।।८६।। अन्वयार्थ - तत्पश्चात् = उनके बाद, एकार्बुदप्रमाणाः = एक अरब प्रमाण. चतुर्युक्ताशीतिकोटिप्रमाणकाः = चौरासी करोड़ प्रमाण,
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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