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द्वित्तीया
सैनिकों की टुकडियां कहीं गयीं स्मरण की गई हैं | चक्रवर्ती के साथ यात्रा करने वाले चक्री के सदाक्यों की रक्षा करने वाले विद्याधर भी यात्रा के लिये चले। एककोटीध्वजानां च तथादुन्दुभयो मताः ।
एवं वाद्यध्वनिर्मार्गे खात्सर्वान्प्रहर्षयन् ।।८३।। अन्वयार्थ · ध्वजानां = ध्वजाओं की, (संख्या = संख्या), एककोटी = एक
करोड़, तथा च = और, दुन्दुभयः :- नगाडे, (अपि = भी). एककोटी = एक करोड़, मताः = मानी गयी है, एवं च =
और, वाद्यध्वनिः :- बाजों की ध्वनि, मार्गे = रास्ते में, खात् :- आवाज से, सर्वान् - सभी को, प्रहर्षयन = हर्षित करती
हुई (ज्ञेयः = जानना चाहिये)। श्लोकार्थ - उस यात्रा में ध्वजाओं एवं नगाड़ों की संख्या एक-एक करोड़
मानी गयी है | मार्ग में बाजों की ध्वनि सभी को प्रसन्न करती हुई जाननी चाहिये। नृपः सम्मेदमेवासौ कूटे सिद्धवरे प्रभोः। स्थापनामजितेशस्य कृत्वा संपूज्य भक्तितः ।।४।। परिक्रम्य त्रिवाारं च सर्वसम्मेदपर्यतम् ।
महोत्सवं चकारासौ जयध्यनिविमिश्रितम् ।।५।। अन्वयार्थ · असौ = उस, नृपः = राजा ने, भक्तितः = भक्ति से, सम्मेद मेव
= सम्मेद पर्वत को ही, संपूज्य - पूजकर, सिद्धवरे - सिद्धवर, कूटे - कूट पर, अजितेशस्य = अजितनाथ तीथंकर की, स्थापनां = स्थापना को, कृत्वा = करके, च = और, सर्वसम्मेदपर्वतम् = सारे सम्मेदपव्रत को. त्रिबारं = तीन बार, परिक्रम्य = परिक्रमा देकर, जयध्वनिविमिश्रितम् = जय जय के नारों से गूंजता हुआ, महोत्सवं = महान उत्सव, चकार
= कराया। श्लोकार्थ - उस राजा ने अतिशय भक्ति से सम्मेदपर्वत को ही पूजकर