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________________ ७६ .--.- -...... श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य त्रिक्रोशं प्रथमे घने घचाल नृपसत्तमः । सार्धगांश्च चतुःसंघान् विधायातीव सादरम् ।।५०|| अन्वयार्थ - नृपसत्तमः = श्रेष्ठ राजा सगर ने, अतीव = अत्यधिक, सादरं = आदर पूर्वक, चतुःसंघान् = मुनि-आर्यिका, श्रावक-श्राविका रूप चारों संघों को, सार्धगान् = साथ चलने वाला, विधाय = करके, प्रथमे = पहिले. घस्रे = दिन में. त्रिक्रोशं = तीन कोस, चचाल = चला। श्लोकार्थ - श्रेष्ठ राजा ने अत्यधिक आदर सत्कार पूर्वक मुनिराजों, आर्यिकाओं, श्रावकों और श्राविकाओं के चतुर्विध संघ को साथी बनाकर अर्थात् उन्हें यात्रा के लिये साथ लेकर पहिले दिन वह तीन कोस अर्थात् लगभग ६ कि०मी० चला। गजाश्चतुरशीत्युक्ता लक्षसंख्यामिताः शुभाः। वातवेगधरारतद्वत्कोट्योऽष्टादशवाजिनः ।।८।। तथा हस्तिप्रमाणाश्च पत्तीनां कोट्यः स्मृताः । विद्याधरास्तथा चेलुश्चक्रिसद्वाक्यरक्षकाः।।८।। अन्वयार्थ - (तयात्रायां = उस यात्रा में), चतुरशीति लक्षसंख्यामिताः = चौरासी लाख संख्या के परिमाण वाले, शुभाः = शुभ लक्षणों से युक्त, गजाः = हाथी, अष्टादश = अठारह, कोट्यः = करोड़, तद्वत् = हाथियों के समान ही शुभ लक्षणों वाले, वातवेगधराः = वायु के वेग को धारण करने वाले. वाजिनः = घोड़े, तथा च = और, हस्तिप्रमाणाः = हाथियों के प्रमाण के बराबर, पत्तीनां = पदातियों की, कोटयः = कोटियां, उक्ताः = कही गयीं, स्मृताः = स्मरण की जाती हैं, तथा च = और, चक्रिसद्वाक्यरक्षकाः = चक्रवर्ती के सद्वाक्यों की रक्षा करने वाले, विद्याधराः = विद्याधर लोग, चेलुः = चले। श्लोकार्थ - चक्रवर्ती की उस तीर्थ यात्रा में चौरासी लाख शुभ लक्षणों वाले हाथी, अठारह करोड़ शुभ लक्षण सम्पन्न एवं वायु के वेग समान दौडने वाले घोडे तथा चौरासी लाख पदाति
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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