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________________ ७४ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य में, केवलज्ञानम् = कंवलज्ञान लक्ष्मी को, अवाप = प्राप्त किया, तदा = तब, सः = उन्होंने, श्रीमद्धनदनिर्मितम् = श्रीसम्पन्न कुबेर द्वारा बनाये गये, समवसारं = समवसरण को, (सम्प्राप्य = प्राप्त करके)1 श्लोकार्थ . उस दीक्षा वन में उग्र तपश्चश्चरण से घातिया कर्मों का क्षय करके उन महाप्रभु ने पौष मास की शुक्लपक्ष की ग्यारहवीं तिथि को दोपहर के समय में केवलज्ञान उपार्जित कर लिया। तब इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने समवसरण की रचना की तथा प्रभु ने उसे पाकर.....। सम्प्राप्य दिव्यध्यनिना गणेशार्दीश्च तत्रगान् । सर्यानाहलाद्य द्वात्रिंशत्सहस्रैः सम्मितेषु च ।।७५।। क्षेत्रेषु विहरन्देवो धर्मानुपदिशन्सतः । सम्मेदशैलं सम्प्राप्य मासमेकं बसन्प्रभुः ।।७६।। संहृत्य दिव्यनिर्घोषं सहस्रमुनिभिः सह। चैत्रस्य शुक्लपञ्चम्यां प्रतिमायोगमास्थितः ।।७।। कूटे सिद्धवरे तत्र मोहारिविजयी तथा । ध्यानाग्निदग्धकर्मासावजितो मुक्तिमवाप च। 1७६।। अन्वयार्थ - (समवसरणं = समवसरण को), सम्प्राप्य = प्राप्त करके, तत्रगान् = वहाँ स्थित, च = और, गणेशादीन् = गणधरादि. सर्वान् = सभी को, आल्हाद्य = आल्हादित करके, द्वात्रिंशत्सहस्रैः = बत्तीस हजार, (वर्षेः = वर्षों द्वारा), सम्मितेषु = समनुकूल, क्षेत्रेषु = क्षेत्रों में, विहरन् = विहार करते हुये, च = और, सतः = सज्जनों को. धर्मानुपदिशन् = धर्म का अनुकूल उपदेश करते हुये, सम्मेदशैलं = सम्मेदशिखर को, सम्प्राप्य = प्राप्त करके, एक = एक, मास = माह तक, वसन् = रहते हुये, प्रभुः = प्रभु ने, दिव्यनिर्घोष = दिव्यध्वनि को, संहृत्य = समेटकर या रोककर. चैत्रस्य = चैत मास की, शुक्लपञ्चम्यां = शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि में, सहस्रमुनिभिः
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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