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________________ हितीया अन्वयार्थ - सः = उसने. कौमारं = कुमारावस्था को. व्यतीत्य = व्यतीत करके, च = और, पैतृक = पिता से प्राप्त, राज्यं = राज्य को. लब्ध्वा = पाकर, अथ च = और इसके बाद, (तं = उस राज्य को), समनुभूय = अच्छी तरह सं भांगकर, सः = वह, राजा : राजा, विरक्तः = विरक्त, हि = ही, बभूव = हो गया। श्लोकार्थ - उसने कुमारावस्था व्यतीत कर पैतृक राज्य प्राप्त किया तथा उसे भोगकर समय गुजारा । फिर विरक्त हो गया। माघशुक्लनवम्यां च रोहिणां देयतार्चितः । दीक्षां जग्राह तपसा तपश्चरे महेश्वरः ।।७२।। अन्वयार्थ - (विरक्तः = विरक्त, राजा = राजा ने) माघशुक्लनवम्यां = माघ सुदी नवमी के दिन, रोहिण्यां - रोहिणी नक्षत्र में, देवतार्चितः = देवताओं से पूजित होता हुआ, दीक्षा = मुनिदीक्षा को, जग्राह = ग्रहण किया, च = और, महेश्वरः = प्रभु ने, तपसा :- तपश्चरण से, तपः = तप, चक्रे = किया । श्लोकार्थ - विरक्त हुये राजा ने माघ सुदी नवमी के दिन रोहिणी नक्षत्र में देवताओं से पूजित होते हुये दीक्षा ग्रहण कर ली तथा महान् प्रभुत्व की ओर अग्रसर प्रभु ने तपश्चरण से तप का आचरण किया। घातिकर्मक्षयं कृत्वा तपसोग्रेण तद्वने । पौषमासे च शुक्लायामेकादश्यां महाप्रभुः ।।३।। तथापराह्नवेलायां केवलज्ञानमयाप सः | तदा समवसारं स श्रीमद्धनदनिर्मितम् ।।७४।। अन्ययार्थ - तद्वने = उस दीक्षा वन में, सः = उन, महाप्रभुः = महाप्रभु ने, उग्रेण तपसा - उग्र तपश्चरण से, घातिकर्मक्षयं = घातिकर्मों का क्षय, कृत्वा = करके. पौषमासे = पौष महिने में, शुक्लायाम् = शुक्लपक्ष में, एकादश्यां = एकादशी की तिथि में, तथा = और. अपरान्हवेलायां = दोपहर के समय
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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